अभिन्नता को जीवंत कीजिये यह आपको परम् रस से सहज एक कर देगी - सत्यजीत तृषित ।
अभिन्नता को जीवन्त करने हेतु स्वयं को हर रूप में जी लीजिये । एक जल की बुंद से , एक रज कण तक सब । कभी पवन , कभी पाषाण , कभी पुष्प , कभी काँटा सब जी लीजिये । फिर आप अपनी जी हुई जिस भी वस्तु को देखोगें वह आप को पृथक् नहीँ दिखेगी ।
यह बात निकुँज रस तक लें जा सकती है - सत्यजीत तृषित ।
No comments:
Post a Comment