Wednesday, 4 May 2016

योवन में भोग स्वभाविक है

योवन में भोग स्वभाविक है , बुढ़ापे में त्याग , भोग पूर्ति अवस्था स्वतः त्याग पर जाती है ।
वृद्ध भोग की भी बात करेगें तो उससे त्याग की महक उठेगी।
युवा विशुद्ध रस स्थिति से पूर्व त्याग की भी बात करेगें तो अदृश्य में उसमें भोग होगा ।
सनातन धर्म में सभी स्थितियाँ आवश्यक और स्वभाविक प्रक्रिया से आती है । बलवत प्रयास स्वरूप को बिगाड़ डालते है ।
बालक में त्याग का भाव हो या युवा में हो अर्थात् भोग क्षेत्र उनका कभी पूर्ण हो चूका है ।
सत्यजीत तृषित ।

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