Tuesday, 3 May 2016

आत्महत्या किसकी ओशो

हम आत्महत्यारे क्यों ?

ध्यान रहे, आत्महत्या शब्द का हम प्रयोग करते हैं, लेकिन ठीक अर्थों में उपनिषद ने प्रयोग किया है, हम ठीक अर्थों में प्रयोग नहीं करते। अगर कोई आदमी अपने शरीर को मार डाले, तो हम कहते हैं, आत्महत्या की है उसने, आत्महंता है वह, स्यूसाइड किया। ठीक नहीं है यह बात। क्योंकि शरीर को मार डालना आत्मा को मार डालना नहीं है; शरीर की हत्या आत्महत्या नहीं है। स्वयं ने की है, फिर भी स्वयं की नहीं है। वस्त्र का, आवरण का ही बदलाहट है। शरीर—घात है, आत्महत्या नहीं है।

उपनिषद तो उसे आत्महंता कहता है, जो अज्ञान से आच्छादित अपने को बिना जाने ही जी लेता है। वह स्यूसाइडल है। वह आदमी अपनी आत्मा की हत्या कर रहा है। अपने को बिना जाने जीना आत्महत्या है। अपने को बिना जाने जीना..।

और हम सब अपने को बिना जाने जीते हैं। हम जीते हैं जरूर, लेकिन यह बिलकुल पता नहीं होता कि हम कौन हैं, कहां से हैं, क्यों हैं, किसलिए हैं? किस ओर हैं, कहां जाते हैं, क्या प्रयोजन है? क्या अर्थ है इस होने का? नहीं, हमें कुछ भी पता नहीं है। हमें अपना कोई भी पता नहीं है।

ईशावास्य उपनिषद, प्रवचन-३,

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