अर्जुन पूछते हैं......आप सूर्य को काम-योग के सम्बन्ध में कैसे बताया होगा क्योकि सूर्य का जन्म कल्प के प्रारंभ में हुआ है और आप वर्तमान में हैं ?-----गीता- श्लोक 4।4
उत्तर के लिए योंतो श्लोक 4.5 पर्याप्त है लेकिन यहाँ हमें देखना है अध्याय- 4 के पूरे श्लोकों को जो संख्या में
42 हैं । श्लोक 4.5 में श्री कृष्ण कहते हैं.....पहले तेरे और मेरे अनेक जन्म हो चुके हैं, तूं अपनें पूर्व जन्मों को
इस समय नहीं जानता पर मैं अपनें पूर्व जन्मों को जानता हूँ । गीता श्लोक 2.12 में श्री कृष्ण कहते हैं.....
यहाँ उपस्थित सभीं लोगों के पहले अनेक जन्म हो चुके हैं और भविष्य में भी इन सबका जन्म होगा फ़िर जो
भीं मरनें वाले हैं उनके लिए क्या सोच कारना ? , यहाँ अर्जुन चुप रहते हैं लेकिन अध्याय चार में चुप नहीं
रहते , ज्योंही मौका मिला , पूछ बैठे की आप सूर्य को कैसे काम-योग को बता सकते हैं ? मोह- भय में ज्ञान
के ऊपर अज्ञान की चादर चढी होती है , मन-बुद्धि अस्थिर हो जाते हैं और ऐसा ब्यक्ति यह नहीं समझता
की वह क्या बोल रहा है ? स्मृतियों में वापिस जानें के सम्बन्ध में महावीर एवं बुद्ध क्रमशः जातिस्मरण तथा
आलय विज्ञानं में ध्यान कराते थे जो इस समय लुप्त हो चुका है । L Rom Habbard एवं Edgar Cayce भी
महावीर तथा बुद्ध की स्मृति-विज्ञान का प्रयोग करके आम लोगों का भला किया लेकिन आज वैज्ञानिक युग
में इन बातों पर कौन बिश्वाश करेगा ?गीता श्लोक 4.7 , 4.8 में श्री कृष्ण कहते हैं----धर्म की रक्षा करनें के लिए
तथा साधू - पुरुषों की रक्षा के लिए मैं निराकार से साकार रूप धारण कर्र्ता हूँ । यहाँ कुछ सोचना पडेगा ....
सत युग के बाद त्रेता-युग आया जिसमें ऊपर बताई गयी बातों के लिए श्री राम के रूप में परमात्मा का
अवतरण हुआ लेकिन पाप का अंत तो हुआ नहीं क्योंकि त्रेता-युग के बाद उस से भी ख़राब युग द्वापर आगया।
यदि त्रेता-युग में पाप का अंत हो गया होता तो फ़िर द्वापर के स्थान पर सत -युग से भी उत्तम कोई युग आना चाहिए था पर ऐसा हुआ नहीं । द्वापर में पूर्णावतार के रूप में श्री कृष्ण के रूप में परमात्मा का आना हुआ लेकिन
पाप का फ़िर अंत न हो पाया क्योंकि द्वापर के बाद उस से भी ख़राब युग --कलि-युग आगया। गीता के ऊपर दिए गए दो श्लोकों को बिना सोचे - समझे लोग अपनें -अपने सीनें में बिठा रखा है जबकि दो रुपये में भी यदि कोई
चीज ली जाति है तब लोग दस बार सोचते हैं । अब हम अध्याय -4 के कुछ और श्लोकों को देखते हैं ..........
श्लोक 4.10 कहता है---राग,भय एवं क्रोध मुक्त ब्यक्ति परमात्मा को प्राप्त करता है , श्लोक 4.19,4.22 कामना
तथा संकल्प रहित ब्यक्ति को कार्म-तत्त्व नहीं पकड़ पाते । श्लोक 4.29-4.30 को आप जरुर पकडें क्योंकि
यहाँ आप को बुद्ध की बिपत्सना ध्यान बिधि मिलेगी ।
गीता सूत्र 4.38 कहता है ....ध्यान-योग सिद्धि पर ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
====ॐ=======
अर्जुन का प्रश्न - 5
अर्जुन पूछ रहे हैं ----आप कर्म-योग एवं कर्म-संन्यास दोनों की बातें बता रहे हैं लेकिन इन दोनों में
मेरे लिए कौन सा उत्तम है, कृपया मुझे बताएं ?
उत्तर को प्रश्न - 2 के उतर केसाथ बताया जा चुका है लेकिन यहाँ गीता के 60 श्लोकों [5.2-5.29 , 6.1-6.32] तक को देखना चाहिए ।
गीता में कर्म, कर्म-योग , कर्म- संन्यास एवं ज्ञान का एक समीकरण दिया गया है जो टुकडों में बिभिन्न अध्यायों
में बिभक्त है , जो इस समीकरण को खोज लिया वह बन गया गीता - योगी । गीता कहता है की बाहर से देख
कर यह समझना काफी कठिन है की कौन भोगी है और कौन योगी है क्योंकि एक ही काम को भोगी - योगी
दोनों करते हैं । भोगी के कर्म के पीछे गुन-तत्वों का प्रभाव होता है और योगी के कर्म प्रकृति की जरुरत के
लिए होते हैं । गीता कहता है --जो गुणों को करता देखता है वह है द्रष्टा-साक्षी [ गीता सूत्र - 14.19 , 14.23 ]और
करता-भाव तो अंहकार की छाया है [ गीता-सूत्र 3।27] , आइये ! अब कुछ और श्लोकों को देखते हैं ।
योगी- सन्यासी के कर्म संकल्प एवं चाह रहित होते हैं [गीता-सूत्र 6.1,6.2,6.4] तथा योगी-सन्यासी स्वयं का
मित्र होता है [गीता-सूत्र 6।6] , इनके कर्म कामना-द्वेष रहित होते हैं [गीता-सूत्र 5।3]। आसक्ति रहित कर्म
से कमलवत स्थिति मीलती है [गीता-सूत्र 5।10] । गीता योगी -सन्यासी समत्व - योगी होता है अर्थात
उसके कर्म में कोई चाह एवं अंहकार नहीं होता [गीता-सूत्र 2.47-2.50 तक ] । कर्म में करता भाव की अनुपस्थिति ही कर्म-संन्यास है [गीता-सूत्र 5।5, 18.11] . परमात्मा कर्म-कर्म फल की रचना नहीं करता
तथा किसी के अच्छे-बुरे कर्मों को ग्रहण भी नहीं करता [गीता-सूत्र 5।14-5।15]। काम-क्रोध से अप्रभावित
ब्यक्ति सुखी रहता है क्योंकि सभी पाप कर्मों का कारन काम है [गीता-सूत्र 3.36-3.42 , 5.23,5.26,7.11]और
गीता -सूत्र 5.27-5.28 में आज्ञा-चक्र पर ध्यान की बात बताई गयी है जिसको हम अलग से लेंगे । गीता-
सूत्र 6.11-6.20 तक में ध्यान की कुछ अहम् बातें बताई गयी हैं जिनको गीता-ध्यान बिधियों में स्पष्ट किया जाएगा।
संकल्प कामना की जननी है [गीता-सूत्र 6.24 ] , कामना अज्ञान- की जननी है [गीता-सूत्र 7.20 ] और ध्यान
में डूबे ब्यक्ति का मन ऐसे स्थिर होता है जैसे वायु रहित स्थान में एक दीपक की ज्योति स्थिर रहती है
[गीता-सूत्र 6।19]।
Satyajeet trishit
=====ॐ=======
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