मानव जीवन की अन्तिम परीक्षा मृत्यु है । मनुष्य की प्रतिक्षण मृत्यु होती रहती है जो प्रत्येक क्षण को सुधारता है उसकी मृत्यु सुधरती है और जिसकी मृत्यु सुधर गयी उसका जीवन भी उजागर हो जाता है ।
प्रभु का स्मरण प्रत्येक क्षण के अन्तकाल मेँ करना चाहिए - "क्षणस्य अन्तकाले मात्र " जीवन के अन्तकाल मेँ नहीँ । क्षण क्षण को सुधारता है उसी का जीवन सुधरता है । यह शरीर प्रतिक्षण बदलता रहता है अर्थात् प्रतिक्षण शरीर का नाश होता रहता है । अन्तकाल मेँ अर्थात् प्रत्येक पल के अन्त मेँ मनुष्य की मृत्यु होती रहती है अतः प्रतिक्षण प्रभू का स्मरण करना चाहिए ।
अन्यथा अन्तकाल मेँ वही सब कुछ याद आता है जिसमेँ सारा जीवन मेँ बीता रहता है ।।
Wednesday, 28 October 2015
रहस्य भाव 18
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