स वै पुंसां परो धर्मो यतो भक्तिरधोक्षजे ।
अहैतुक्यप्रतिहता ययाऽऽत्मा सम्प्रसीदति ।।
> जिस धर्म से मनुष्य के दिल मेँ श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति जगे , वही धर्मश्रेष्ठ है । भक्ति भी ऐसी होनी चाहिए कि जिसमेँ किसी भी प्रकार की कामना न हो । निष्काम तथा निरंतर भक्ति से हृदय आनन्द रुप परमात्मा की प्राप्ति करकेकृतकृत्य हो जाता है ।।
श्रीहरिशरणम्000000¤¤¤¤¤¤¤
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