यह सारा जगत और जगत मेँ रहने वाले सब चर अचर प्राणी परमात्मा मेँ ओत प्रोत है , अतः संसार के किसी भी पदार्थ से मोह न रखते हुए जीवन के लिए जितना जरुरी हो उतना ही उपभोग करना चाहिए । तृष्णा का सर्वथा त्याग करना चाहिए ।
इस जगत की संपत्ति किसकी है और कब किसकी हुई ?
अतः त्याग पूर्वक इसका उपभोग करना चाहिए । अर्थात सर्वस्व ईश्वर को अर्पण करके अनासक्त रहकर उपभोग करना चाहिए । दूसरो के धन को प्राप्त करने की स्पृहा नही रखना चाहिए ।
यह सारा जगत ईश्वर से व्याप्त है अर्थात प्रभू सर्वव्यापक हैँ , ऐसा सोचने से कभी भी किसी के प्रति द्रोह नहीँ उत्पन्न होगा । मन को विषयोँ मेँ फँसने से बचाना होगा । इस जगत के पदार्थ आज तक किसी के नहीँ हुए और होँगे भी नहीँ । फिर भी मनुष्य उनसे ममता रखता है और उनमेँ अपनी आसक्ति बढ़ाता है ।
Tuesday, 20 October 2015
रहस्य भाव 7
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