जैसे ही श्रीकृष्ण के लीलामृत की एक बूँद भी कान मेँ पड़ती है वैसे ही तत्काल राग और द्वेष के द्वन्द्व स्तर से ऊपर उठ जाता है । इसका परिणाम यह होता है कि व्यक्ति भौतिक आसक्ति के संदूषण से पूर्णरुपेण मुक्त हो जाता है और इस जगत , परिवार , गृह , पत्नी . सन्तान ,आदि उन सभी वस्तुओँ का मोह त्याग देता है , जो भौतिक रुप से सभी मानव को प्रिय होती है । भौतिक उपलब्धियोँ से रहित होकर वह अपने सम्बन्धियोँ को भी दुःखी करता है और स्वयं भी दुःखी होता है । फिर वह मानव रुप मेँ अथवा अन्य किसी भी योनि मेँ , चाहे वह पक्षी योनि ही हो , साधु बनकर श्रीकृष्ण की खोज मेँ भटकता रहता है । श्रीकृष्ण को उनके नाम , उनके गुण , उनके रुप , उनकी लीलाओ , उनकी साज सामग्री और उनके संगी साथियोँ को तथ्य रुप से समझना अत्यन्त कठिन है ।।
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