Friday, 30 October 2015

रहस्य भाव 23

जैसे ही श्रीकृष्ण के लीलामृत की एक बूँद भी कान मेँ पड़ती है वैसे ही तत्काल राग और द्वेष के द्वन्द्व स्तर से ऊपर उठ जाता है । इसका परिणाम यह होता है कि व्यक्ति भौतिक आसक्ति के संदूषण से पूर्णरुपेण मुक्त हो जाता है और इस जगत , परिवार , गृह , पत्नी . सन्तान ,आदि उन सभी वस्तुओँ का मोह त्याग देता है , जो भौतिक रुप से सभी मानव को प्रिय होती है । भौतिक उपलब्धियोँ से रहित होकर वह अपने सम्बन्धियोँ को भी दुःखी करता है  और स्वयं भी दुःखी होता है । फिर वह मानव रुप मेँ अथवा अन्य किसी भी योनि मेँ , चाहे वह पक्षी योनि ही हो , साधु बनकर श्रीकृष्ण की खोज मेँ भटकता रहता है । श्रीकृष्ण को उनके नाम , उनके गुण , उनके रुप , उनकी लीलाओ , उनकी साज सामग्री और उनके संगी साथियोँ को तथ्य रुप से समझना अत्यन्त कठिन है ।।

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