Tuesday, 27 October 2015

रहस्य भाव 16

भगवान के स्वधाम गमन का समाचार सुनकर युधिष्ठिर ने स्वर्गारोहण का निश्चय किया । परीक्षित को राजसिँहासन सौँपकर पाण्डवो ने द्रौपदी के साथ लेकर स्वर्गारोहण हेतु हिमालय की दिशा मेँ प्रयाण किया । केदारनाथ मेँ भगवान शिव की पूजा की । जीव और शिव का मिलन हुआ । उसके आगे निर्वाण पंथ है । पाण्डवोँ ने वही मार्ग अपनाया । चलते चलते सबसे पहले द्रौपदी का पतन हुआ क्योँकि पतिव्रता होने पर भी अर्जुन के प्रति अधिक प्रेम होने से पक्षपात का भाव रखती थी । सबके साथ समान व्यवहार रखना चाहिए किसी के प्रति पक्षपात नही रखना चाहिए । दूसरा पतन सहदेव का हुआ क्योकि उन्हेँ अपने ज्ञान का अभिमान था , ज्ञानाभिमान नही रखना चाहिए । तीसरा पतन नकुल का हुआ क्योकि उन्हेँ अपने रुप का अभिमान था , अपनी सुन्दरता का अभिमान नही करना चाहिए । चौथा पतन अर्जुन का हुआ उन्हेँ अपने बल पराक्रम का अभिमान था , बल पराक्रम नश्वर है अतः इसका अभिमान नहीँ करना चाहिए । पाँचवा पतन भीम का हुआ , भीम ने युधिष्ठिर से पूछा कि मैँने तो कोई पाप नहीँ किया फिर मेरा पतन क्यो ? धर्मराज ने बताया अधिक खाने तेरा पतन हुआ । खाते समय आँखे खुली रखनी चाहिए किन्तु सन्तोँ और देवो को भोजन कराते समय आँखे बन्द रखनी चाहिए ।
धर्मराज अकेले आगे बढ़ने लगे परीक्षा के लिए यमराज कुत्ते का रुप बनाकर उनके पास आये और दूसरा रुप लेकर युधिष्ठिर से कहा कि मैँ तुम्हे स्वर्ग ले जाऊँगा किन्तु तुम्हारे पीछे आने वाले इस कुत्ते को स्वर्ग मेँ प्रवेश न मिलेगा , तब युधिष्ठिर ने कहा कि जो मेरे साथ आ रहा है उसे मैँ अकेला कैसे छोड़ दूँ । उसे छोड़कर मैँ स्वर्ग नही जा सकता । क्योकि सात कदम साथ चलने वाला मित्र बन जाता है । यमराज प्रसन्न हुए और युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग गये ।
" आम्हीँ जातो आमुच्या गाँवा, आमचा राम राम ध्यावा ।। कहते हुए तुकाराम भी स्वर्ग गये । मीराबाई सदेह द्वारकाधीश मेँ विलीन हो गयीँ।
आत्मा और परमात्मा का मिलन कोई आश्चर्य की बात नहीँ है । किन्तु कृष्ण प्रेम से जड़ शरीर भी चेतन बनता है और चेतन मेँ विलीन हो जाता है । दिव्य पुरुष सशरीर परमात्मा मे जा मिलते हैँ ।
प्रयाण और मरण मेँ भेद है । अन्तिम श्वास तक सत्कर्म करता रहे उसका प्रयाण कहा जाएगा और मलिन अवस्था मे हाय हाय करता हुआ देह छोड़े उसका मरण कहा जाएगा ।
पाण्डव प्रभू के धाम गये । क्योकि उन्होँने अपने जीवन काल मे कभी धर्म नहीँ छोड़ा ।
धन की अपेक्षा धर्म श्रेष्ठ है । धन इस लोक मे सुख देता है और कभी कभी दुःख भी देता है , किन्तु धर्म जीवन और परलोक दोँनो को उजागर करता है । धर्म मृत्यु के बाद भी साथ जाता है किन्तु धन नही ।

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