जय श्रीकृष्ण >>> गोपी >>
गोभिः पिवति इति गोपी ।। अर्थात् जिसने इन्द्रियो से कृष्ण रस का पान किया वही गोपी है ।
गोपी के भेद >> > साधना सिद्धा >> 1. श्रुतिरुपा > वेद के मंत्र गोपी बनकर आए हैँ । वेदोँ ने ईश्वर का वर्णन तो किया है फिर भी अनुभव नही हो पाया । ईश्वर वाणी का नहीँ , बल्कि ध्यान का विषय है ।संसार का विस्मरण हुए बिना ईश्वर से साक्षात्कार नहीँ हो पाता । तभी वेदाभिमानी देव गोकुल मेँ गोपी बनकर आए ।
2. ऋषिरुपा >> जीव का सबसे बड़ा शत्रु काम है । ऋषियोँ ने बहुतेरा प्रयत्न किया फिर भी वह मर नही पाया । तप करने से शरीर और इन्द्रियोँ का काम तो चला जाता है किन्तु मन मेँ बसा हुआ काम , बुद्धिगत काम नही जाता । ब्रह्म सम्बन्ध स्थापित किए बिना बुद्धिगत काम बना रहता है ।
विश्वामित्र एवं पराशर जैसे शक्तिशाली ऋषि भी काम के आगे झुक गये । सूर्य को तिरोहित करने वाले मुनि काम को दूर न कर सके । काम मर न पाने पर थक हार कर गोपी बनकर गोकुल मे आए ।
3. संकीर्ण रुपा >> संकीर्ण मण्डल मेँ प्रभू के मनोहर रुप को देखकर मन मे कामभाव जाग्रत होने पर जिन स्त्रियो ने गोपी रुपी लिया वे कामरुपा हैँ । जैसे >> शूर्पणखा
4. अन्यपूर्वा>> विवाहोपराँत संसार सुख से अरुचि होने पर प्रभू के प्रति प्रेमभाव उत्पन्न होने पर जिन स्त्री , पुरुषो ने गोपी का रुप लिया उन्हेँ अन्यपूर्वा कहा जाता है । जैसे > तुलसीदास । तुलसीदास केवल पत्नी की और ही आसक्त थे । संसार की अन्य सभी नारियाँ उनके लिए माता समान थीँ । पत्नी रत्नावली की एक ही चेतावनी ने उनकी आसक्ति को प्रभू भक्ति मे बदल दिया । कामासक्ति ईश्वरासक्ति मे बदल गयी । बहुतो को रोज थप्पड़ पड़ते हैँ फिर भी सुधर नहीँ पाते हैँ ।
5. अनन्यपूर्वा >> जन्मसिद्ध पूर्ण वैरागी गोपी बनकर आए । जैसे > शुकदेव , मीरा आदि।
जो गोपियाँ कन्हैया के साथ गोलोक से आयी , वे सभी नित्यसिद्धा गोपियाँ है ।
Sunday, 25 October 2015
रहस्य भाव 14
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