Saturday, 31 October 2015

रहस्य भाव 26

आत्मा असीम आनन्द का भण्डारहै , परन्तु मनुष्य अज्ञान के कारण अपने स्वरुप को भूलजाता है । वह बाह्य वस्तुऔ मेँ आनन्द खोजता है। जहाँ उसे आनन्द के बदले हर जगह रोना , चिन्ता , और दुःख ही मिलता है । भौतिक जगत की वस्तुओ मेँ सुख खोजना ही अज्ञान है । ये वस्तुएँ क्षणभंगुर हैँ . इनसे प्राप्त होने वाला सुख भी क्षणिक है । यदि ये वस्तुएँमिल भी जाती हैँ तो क्षणभर के बाद ही लगता है कि किसी अन्य वस्तु मेँ आनन्द है । वास्तव मेँ इन भौतिक वस्तुओमेँ सुख या आनन्द कहीँ नहीँ, आनन्द तो अपने अन्दर ही हैजिसे हम अज्ञान के कारण देखनहीँ पाते हैँ । हम इन बाहरी भौतिक वस्तुओ मेँ आनन्द मेँ खोजते है परन्तु इनमेँ दुःख और शोक के अतिरिक्त कुछ भी नहीँ मिलता

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