Wednesday, 21 October 2015

रहस्य भाव 8

¤¤¤* आत्मा ही आत्मदेव है ।बुद्धि ही धुँधुली है । मन धुँधकारी है । शरीर ही आत्मदेव का नगर है ।
जब किसी समय आत्मा की पुण्यपुकार को सुनकर बुद्धि तर्कवितर्क करने लगती है । तभी मन रुपी धुँधकारी प्रबल होकर मनमानी करने लगता है ।तब वह हर प्रकार से फँसकर भवसागर मेँ गिरता है और नरकका भागी बनता है।
सन्यासी गुरु द्वारा बताए गये मार्ग का अनुसरण न करनेवाली आत्मा मन के कारण दुःखप्राप्त करती है किन्तु वहीआत्मा जब इन्द्रियो - गोकर्ण - द्वारा समझाये जाने पर अपने स्वरुप को जानकर ईश्वर से एकाकार होतीहै तो सुख प्राप्त करती है !!

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