Wednesday, 21 October 2015

रहस्य भाव 11

अत्रि > न त्रि ! सत , रज , तम , इन तीनोँ गुणोँ का जो नाश करे और निर्गुणी बने वही अत्रि है । सत,रज,तम, इन तीनोँ गुणोँ मेँ जीव मिल गया है ।
तर्जनी उंगली जीव भाव बताती है अभिमान बताती है। जीव मे अभिमान प्रधान है। पाँचवी उंगुली सत्वगुण है  अँगूठा ब्रह्मा है , इसीलिए पुष्टि सम्प्रदाय मेँ प्रभू को तिलक अँगूठे से लगाया जाता है । जीव और ब्रह्मा का सम्बन्ध सतत् होना चाहिए ।
तीन गुणोँ मे जीव मिलता है , और इन तीन गुणो को त्यागकर जीव ब्रह्म सम्बन्ध करता है । जो त्रिगुणातीत ब्रह्मस्वरुप को प्राप्त हुआ है , वही अत्रि है ।
शरीर मेँ विद्यमान तमोगुण को रजोगुण से दूर करना है , रजोगुण को सतोगुण से मारना चाहिए । रजोगुण काम एवं क्रोध का जनक है । सत्कर्म से सत्वगुण बढ़ता है किन्तु सत्वगुण भी बंधनकारक है इसमे भी थोड़ा अहंभाव रह जाता है । अतः अंत मेँ सत्वगुण का भी त्याग करके  निर्गुणी बनना चाहिए ।
यदि जीव अत्रि हो तो उसकी बुद्धि अनसूया हो । असूया रहित बुद्धि ही अनसूया है । बुद्धि मेँ सबसे बड़ा दोष असूया मत्सर है । दूसरोँ भला देखकर ईर्ष्या करना , जलना यही असूया या मत्सर है ।
दूसरो के दोषो का विचार श्रीकृष्ण दर्शन मेँ बाधक है । बुद्धि मेँ जब तक असूया मत्सर होगा तब तक ईश्वर का चिँतन नहीँ कर सकेगेँ । भगवान का दर्शन सब मेँ करना है । यदि जीव सबमेँ ईश्वर दर्शन करे । तो वह कृतार्थ होता है । जिसकी बुद्धि असूयारहित होती है वही अत्रि बनता है । तत्पश्चात दत्तात्रेय पधारते हैँ । जीव तीन गुणो का त्याग करके निर्गुणी बने और बुद्धि असूयारहित बने तब ईश्वर प्रकट होते हैँ ।।

No comments:

Post a Comment