अर्जुन का प्रश्न - 8 ...भाग- 1
अर्जुन पूछते हैं [ गीता-श्लोक ..8-1 , 8.2 ] ---हे पुरुषोत्तम! ब्रह्म क्या है?, अध्यात्म क्या है?, कर्म क्या है? अधिभूत क्या है?, अधिदैव क्या है?, अधियज्ञ कौन है?और वह शरीर में किस तरह है ? तथा अंत समय में आप को कैसे स्मरण करना चाहिए ?
ऐसा प्रश्न वह भी उस समय जब युद्ध के बादल हर पल सघन हो रहेहों , कुछ असामयीक लगता है । इस प्रश्न के सम्बन्ध में हमें गीता के 76 श्लोकों को देखना है [ गीता- 8.3 से 10.16 तक ] । अर्जुन के प्रश्न- 2 एवं 5 में कर्म, कर्म-योग , कर्म-संन्यास तथा ज्ञ्यान की बातें बताई गयी हैं लेकिन कर्म की परिभाषा यहाँ दी जा रही है , क्या यहबात आप को उचित लगती है? अब आप प्रश्न का उत्तर देखिये -------परम कहते हैं ............
परम अक्षर - ब्रह्म है [ अक्षर का अर्थ है सनातन ] , मनुष्य का स्वभाव -अध्यात्म है , जिसके करनें से
भावातीत की स्थिति मिले वह कर्म है , टाइम स्पेस में स्थित सभी सूचनाएं अधिभूत हैं, ब्रह्मा अधिदैव हैं और विकार सहित देह में स्थित आत्मा रूप में विकार रहित परमात्मा अधियज्ञ हैं , अब प्रश्न की आखिरी बात को समझना है जिसको हम अगले अंक में लेंगे ।
सत्यजीत तृषित ।।
====ॐ======
अर्जुन का प्रश्न- 8 , भाग- 2
अर्जुन के प्रश्न - 8 का उत्तर तो प्रथम भाग में मिल चुका है लेकिन प्रश्न एवं उत्तर के रूप में हम यहाँ पूरी गीता देखनें जा रहे हैं अतः इस प्रश्न से सम्बंधित 76 श्लोकों [ श्लोक 8.3---10.16 तक ] को देखेंगे ।
यहाँ इस अंक में हम श्लोक 8.6--8.15 तक को ले रहे हैं । गीता के इन दस श्लोकों में दो बातें प्रमुख हैं ; आत्मा का नया शरीर धारण करना एवं प्राण छोड़ते समय की ध्यान-विधि ।
श्लोक 8.6 , 15.8 : ये दो श्लोक कहते हैं ---आत्मा जब शरीर छोड़ कर गमन करता है तब इसके संग मन भी रहता है और मन में संग्रह की गयी सभी अतृप्त कामनाएं आत्मा को वैसा शरीर धारण करनें के लिए
विवश करती हैं जैसा शरीर उनको चाहिए । गीता कहता है ......आखिरी श्वाश भरनें से पहले अपनें मन कोपूरी तरह से रिक्त करदो जिस से मोक्ष मिल सके । रिक्त मन-बुद्धि का दूसरा नाम चेतना है जिसका सीधा सम्बन्ध ब्रह्म से होता है ।
श्लोक 8.12--8.13 : इन दो सूत्रों के माध्यम से गीता उस ध्यान-विधि को बता रहा है जीसको स्थिर बुद्धि
वाला योगी अंत समय में करता है । जो यहाँ ध्यान-विधि दी जा रही है वैसा ध्यान जैन परम्परा में
भी है तथा तिबत में इसको बार्दो-ध्यान कहते हैं । यह विधि इशावत्स्य उपनिषद में भी देखा जा सकता है।
श्री कृष्ण यहाँ कहते हैं ----मन को ह्रदय में स्थापित करो , प्राण-ऊर्जा को धीरे-धीरे तीसरी आँख पर सरकाओ और ॐ ध्वनी को ऐसे गुनगुनाओ की शरीर के कण-कण से ॐ ध्वनी गूंजनें लगे । ध्यान रखनें की बात यहाँ यह है की यह ध्यान - विधि स्थूल विधि नहीं है , यह भावना आधारित है अतः जबतक भावात्मक रूप से ॐ के माध्यम से प्रभू मय नही हुआ जा
सकता तबतक यह ध्यान फलित नही हो सकता ।
====ॐ======
अर्जुन का प्रश्न - 8 भाग - 3
अर्जुन के प्रश्न - 8 में हम गीता के 76 श्लोकों में से यहाँ सात श्लोकों [ गीता सूत्र 8.16--8.22 तक ] को देखनें जा रहे हैं जिसमें दो अति महत्वपूर्ण बातें आप को मिलेंगी ; पहली बात आज के कोस्मोलोजी [ cosmology ] से है और दूसरी बात वह है जो कल का विज्ञान बन सकता है , इस बात की कल्पना प्रोफेसर आइंस्टाइन एवं हाकिंग भी करते रहें हैं ।
पहली बात
आज की कोस्मोलोजी आइंस्टाइन के उन विचारों पर आधारित है जिसको उन्होंनें 1916-1917 AD में सोचा था ।
गीता की कोस्मोलोजी जो गीता के अध्याय - 8 में है उसके सम्बन्ध में हमें तीन और श्लोकों [ 3.22,13.33,15.6]को भी देखना चाहिए ।
गीता पूरे ब्रह्माण्ड को तीन लोकों में देखते हुए कहता है ---मृत्यु-लोक, देव-लोक तथा ब्रह्म-लोक में ऊर्जा का माध्यम सूर्य है लेकिन इन तीनों लोकों से परे परम धाम है जो स्व प्रकाशित है । परम धाम को छोड़ कर अन्य तीन लोक पुनरावर्ती हैं अर्थात ये जन्म-जीवन - मृत्यु से प्रभावि़त हैं । आज ये लोक हैं जो धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं और कहीं और बन भी रहें हैं। आज विज्ञान नयी पृथ्वी की तलाश में शनि के चन्द्रमा टाइटन तक जा पहुँची है। वैज्ञानिक देव-लोक एवं ब्रह्म-लोक को यदि तलाशना चाहते हैं तो उनको उस क्षेत्र में देखना चाहिए जहाँ तक सूर्य का प्रकाश फैला है ।
दूसरी बात
गीता कहता है ----मनुष्य एवं अन्य जीवों - वनस्पतियों को ऊर्जा में बदला जा सकता है और उन्हें पुनः
उनके पूर्व स्वरूपों में वापस लाया जा सकता है । हिंदू पौराणिक कथाओं में तो ऎसी अनेक घटनाएँ मिलती हैं पर वैज्ञानिक प्रमाण नही मिलता ।
गीता कोस्मोलोजी के सम्बन्ध में एक और महत्वपूर्ण बात कहता है----
वेदों में सृष्टि की अवधि को 4.32 million वर्ष बतायी गयी है और इस अवधि को गीता चारों युगों की अवधि से हजार गुना ज्यादा मानता है । चार योगों में तो मनुष्य के होनें की बात समझा जा सकता है लेकिन चार युगों की अवधि से हजार गुना अवधि में भूत रहते हैं अर्थात किसी न किसी रूप में जीव होते हैं --गीता की यह बात वैज्ञानिक नजरिये से समझना चाहिए जिसमें जीव विकास का राज मिल सकता है ।
विज्ञान कहता है ---पहले एक कोशिकीय जीव बने और उनके विकास के फलस्वरूप मनुष्य का होना हुआ ।
गीता जींव्- विकास का समय 999x चार युगों की अवधि को कहता है इस अवधि में जीव तो होते हैं पर
मनुष्य नहीं होते , यदि आप वैज्ञानिक हैं तो गीता की इस बात को गहराई से देख सकते हैं ।
सत्यजीत "तृषित" ।
=====ॐ=======
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