Saturday, 12 December 2015

रहस्य भाव 65

जीव उत्तानपाद है , जिसकी दो पत्निया - 1 . सुरुचि- अर्थात वासना । जो मन को अच्छा लगे उन्हीँ भोगो मे लिप्त रहना ही सुरुचि का दासत्व है ।जिससे उत्तम का जन्म होता है अर्थात् उद (ईश्वर) तम (अंधकार) ।ईश्वर की अज्ञानता ही अंधकार है । जो सुरुचि के अधीन रहते है उन्हे ईश्वर की प्राप्ति नही होती ।
2. सुनीति - सुन्दर नीति ,जो नीति के अधीन रहकर पवित्र जीवन जीता है उसे ध्रुव (अविनाशी) अर्थात् अनन्त सुख की , ब्रह्मानन्द की प्राप्ति होती है जिसका कभी विनाश नही होता ।
मनुष्य यदि सु नीति के साथ रहेगा तो उसे ध्रुव के समान ब्रह्मानन्द प्राप्त होगा ।वह सदाचारी होगा । किन्तु सु रुचि के अधीन होने पर अज्ञान रुपी अंधकार से घिर कर दुराचारी होगा - दुःशीलो मातृदोषेन , पितृ दोषेन मूर्खता । कार्पण्य वंशदोषेन , आत्मदोषेन दरिद्री ।।

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