Thursday, 3 December 2015

रहस्य भाव 59

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मन बड़ा विश्वास घाती है, इसका लेशमात्र भी विश्वास नहीं करना चाहिए.! इसपर अंकुश रखना चाहिए राम नाम का! पाप वासना अज्ञान से जागती है.और अज्ञान का मूल अहंकार है! यदि हम श्री कृष्ण को प्राणार्पण कर दें तो पाप करने की इच्छा ही जागृत नहीं होगी.! हमारा अहंकार नष्ट हो जायेगा.! मन तथा इन्द्रियों की एकाग्रता, ब्रह्मचर्य ,शम, (मन का नियमन ).,दम (बाह्य इन्द्रियों का नियमन ).,मन. की स्थिरता, दान, सत्य, शौच, यम, नियम आदि से पाप की वासना नष्ट होती है.!
प्राणार्पण का अर्थ है --प्राण -प्राण से, श्वास -श्वास. से, ईश्वर के नाम का जप किया जाय.!
"श्वास - श्वास. पर है. तेरा. नाम. मुरली वाले.,
मुझे चरणो. से लगा लो. घनश्याम. मुरली. वाले "
सर्वप्रथम भगवान का स्मरण किया जाय फिर सांसारिक कार्य किया जाय.! जब तक परमात्मा का ज्ञान नहीं होगा तब तक वासना नष्ट नहीं होगी.! अज्ञान मे वासना का जन्म है.! ईश्वर और जगत के स्वरूप का ज्ञान होने पर ही वासना नष्ट होगी.! ईश्वर आनन्द रूप और जगत दु: ख रूप है.ऐसा अनुभव होने पर ही वासना नष्ट होती है.!
ज्ञानी केवल इन्द्रियो को ही विषयों की ओर जाने से रोकते है. किन्तु इससे वासना नष्ट नहीं होती! इन्द्रियों को रोकने से नही बल्कि उन्हें प्रभू. की ओर मोड़ने से वासना का नाश होता है., प्रत्येक इन्द्रिय को परमात्मा की ओर मोड़ देने पर .वासना का नाश होगा.!!!

पाँच कर्मेन्द्रिय, पाँच ज्ञानेन्द्रिय., मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार. सभी को परमात्मा के चरण कमलों मे लगा देने, उनके पवित्र नामों का संकीर्तन करने,  उनके गुणों का संकीर्तन करने. से वासना नष्ट होती है  
जैसा तुलसीदास जी ने कहा है. --- 
"मंत्र महामनि विषय व्याल के.!  मेटत कठिन कुअंक भाल के.!! "
भाव कुभाव अनख आलसहू.! नाम जपत मंगलदिशि दसहू.!!!! ***

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