Wednesday, 23 December 2015

रहस्य भाव 72

>सच्चा सुख आनन्द <
एक बार माता देवहूति ने
भगवान कपिल से प्रश्न
किया - जगत मेँ सच्चा सुख
आनन्द कहाँ है और उसे पाने
का साधन क्या है ?
कपिल भगवान ने कहा --
माता, किसी जड वस्तु मे
आनन्द नहीँ रह सकता ।
आनन्द
तो आत्मा का स्वरुप है ।
अज्ञानवश जीव जड वस्तु
मे आनन्द खोजता है ।
संसारिक विषय सुख
तो देते है किन्तु आनन्द
नही देते । जो तुम्हेँ सुख
देगा वह दुःख
भी देगा किन्तु भगवान
हमेशा आनन्द ही देते है ,
आनन्द
परमात्मा का स्वरुप है ।
मित्रो सांसारिक सुख
तो शरीर
की खुजली जैसा है कि जब
तक आप खुजलाते रहेगे तब
अच्छा लगेगा । किन्तु
खुजाने से नाखून के जहर के
कारण खुजली का रोग
बढता जाता है ।
सर्वोत्तम मिठाई
का स्वाद भी जिह्वा तक
ही रहता है ।
जगत के पदार्थो मेँ आनन्द
नही है ,
उसका आभासमात्र है ।यह
जगत दुःख रुप
है .,..,...गीता के अनुसार
"अनित्यं असुखं लोकं इमं
प्राप्य भजस्व माम् ।"
हे अर्जुन ! क्षणभंगुर और
सुखरहित इस जगत को और
मनुष्य शरीर प्राप्त करके
तू मेरा ही भजन कर ।
आरम्भ मे तोजड वस्तु मे
भी सुख का अनुभव होता है
किन्तु वह विषमय ही है -
" विषयेन्द्रियसंय
ोगाद्यत्तदग्रेऽ
मृतोपमम् ।
परिणामे विषमिव तत्सुखं
राजसम् स्मृतम् ।"
गीता 18/ 38 ।
विषयो और इन्द्रियो के
संयोग से जो सुख उत्पन्न
होता है , वह आरम्भ मेँ
(भोगकाल मे)तो अमृत
जैसा लगता है किन्तु
परिणाम की दृष्टि से
विष के समान ही है । इसे
राजस सुख कहा गया है ।

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