जय श्री कृष्णा"
सरोवर में ग्राह ने गजेन्द्र को पकड़ा, उसे उसके परिजन भी न छुड़ा सके।
और स्वयं भी बल लगाकर युद्ध करने के बाद भी उसे ग्राह से मुक्ति न मिली।
अन्ततः भगवान् की कृपा से वह ग्राह रुपी काल के मुख से छूटा।
इसका आध्यात्मिक रहस्य यह हैः- हृदयरूपी सरोवर में जीवरूपी गजेन्द्र है
“हृदि वारे अयमात्मा प्रतिष्ठितः”
उसमें मोहरूपी ग्राह ने इस जीवरूपी गजेन्द्र को पकड़ रखा है।
इस मोहरूपी ग्राह से इसे इसके परिजन नहीं छुड़ा सकते, अनन्त वर्षों से इसकी लड़ाई मोह से चल रही है।
और यह जीव बार-बार पराजित होता आया है।
जिसका स्वरूप देहगेहासक्ति आदि विभिन्न रूपों में दिखता है।
इस मोहरूपी ग्राह से केवल परमात्मा ही बचा सकता है और उसका परिज्ञान मात्र श्रोत्रिय
ब्रह्मनिष्ठा गुरु की कृपा से ही हो सकता हैः-
“तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्”
गजेन्द्र को पूर्वजन्म में गुरु से लब्ध ब्रह्मविद्या का स्मरण भगवत्साक्षात्कार का कारण बना।
भगवान् का दर्शन होने पर मोहरूपी ग्राह का नाश होता है और जीवरूपी गजेन्द्र की रक्षा होती है अर्थात् वह अपने सच्चिदानन्द स्वरूप में अवस्थित होता है।
दूसरा रहस्य यह कि गजेन्द्र जैसे भक्त का चरण ग्राह जैसे दुष्ट ने पकड़ा पर मुक्ति पहले ग्राह की हुई और बाद में गजेन्द्र की।
इससे यह शिक्षा मिलती है कि भक्त के चरणों से सम्बद्ध जीव का उद्धार भगवान् पहले करते हैं...।
जय जय श्री राधे
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