Thursday, 10 December 2015

रहस्य भाव 61

>>>>>कृष्ण मिलन यज्ञ मेँ
श्रद्धा पत्नी है ,आत्मा यजमान ,शरीर
यज्ञ भूमि और फल
परमात्मा विष्णु से मिलन
। परमात्मा से मिलन
महानतम यज्ञ है ।
जीवात्मा और
परमात्मा का मिलन
महायज्ञ है । यज्ञ से
चित्तशुद्धि होती है।
चित्तशुद्धि का फल है
परमात्मा की प्राप्ति ।
सभी इन्द्रियाँ यज्ञमण्डल
के द्वार हैँ । इस यज्ञ मेँ
काम , क्रोध , लोभ , मोह
आदि राक्षस बाधा करने
के लिए आते हैँ । इस
महायज्ञ मेँ
विषयरुपी मारीच
बाधा डालता है । द्वार
पर राम- लक्ष्मण
को स्थापित करने से
काम,क्रोध,
वासनारुपी मारीच और
सुबाहु विघ्न करने नहीँ आ
पायेगेँ ।
आँखो मेँ . कानो मेँ , मुख मेँ ,
सभी इन्द्रियोँ के द्वार
पर राम लक्ष्मण
को बैठाने (कीर्तन करने )
से मारीच (विषय) विघ्न
नहीँ कर सकेगा । मारीच
शीघ्र नहीँ मरता ।
अपनी इन्द्रयोँ के द्वार
पर राम लक्ष्मण को शब्द
ब्रह्म , परब्रह्म
को आसीन करने से काम -
मारीच यज्ञ मेँ
बाधा नहीँ डाल सकेगा ।
तभी जीवन यज्ञ
निर्विघ्न समाप्त
होगा ।
माया मारीच
को रामचन्द्र विवेक बाण
से मारते हैँ । जिसके चिँतन
से काम का नाश होता है
वही ईश्वर है ।
भागवत मे राहु और
रामायण मे मारीच ,
( विषय) दोनो एक समान
है . तुरन्त नहीँ मरते है ।
किन्तु भगवन् नाम
संकीर्तन ये दोनो बाधक
नही बन पाते --->
हरे राम हारे राम , राम
राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण , कृष्ण
कृष्ण हरे हरे ।।

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