प्रभु श्रीकृष्ण मनुष्यों से कहते हैं कि मनुष्यों के सारे सम्बन्धों का आधार है अपेक्षा..........
पति कैसा हो? जो मेरा जीवन सुख और सुविधाओं से भर दे!! पत्नि कैसी हो? जो सदैव मेरे प्रति समर्पित रहे!! सन्तान कैसी हो? जो मेरी सेवा करे, मेरा आदेश माने!!
मनुष्य उसी को ही प्रेम कर पाता है, जो उसकी अपेक्षा पूर्ण करता है किन्तु अपेक्षा की तो नीति ही है, भंग होना
क्योंकि अपेक्षा मनुष्य के मस्तिष्क में जन्म लेती है कोई अन्य व्यक्ति उसकी अपेक्षाओं के बारे मे जान ही नहीं पाता और पूर्ण करने की प्रमाणिक इच्छा हो तब भी मनुष्य किसी की अपेक्षाओं को पूर्ण नही कर पाता और वहाँ से जन्म लेता है संघर्ष
सारे संबंध संघर्ष मे परिवर्तित हो जाते हैं पर मनुष्य अपेक्षाओं को संबंध का आधार नहीं बनाने चाहिए और स्वीकार करे केवल संबंध का आधार!! कोई अपेक्षा न रखें किसी से, स्वयं से भी नहीं और भगवान से तो बिल्कुल नहीं
संबंध का आधार केवल प्रेम होना चाहिए, स्वच्छ, निर्मल, निश्चल, पवित्र और निःस्वार्थ प्रेम होना चाहिए तो ये जीवन स्वंय सुख और शान्ति से भर जायेगा
ज्योत से ज्योत जगाते चलो,
प्रेम की गंगा बहाते चलो
प्रेमस्वरुपीनी श्री राधारानी की जय
अपने अपने गुरुदेव की जय
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