Wednesday, 2 December 2015

रहस्य भाव 58

-> वृथा गतं तस्य नरस्य जीवनं <-
"नारायण पंकजलोचनः प्रभुः, केयूरहारं परिशोभमानः ।
भक्त्या युतो येन सुपूजितो नहि , वृथा गतं तस्य नरस्य जीवनं ।।
>>> नीलकमल से सुन्दर जिनके नेत्र हैँ , जिनके आकर्षक अंगो पर केयूर ,हार आदि आभूषण शोभायमान हैँ ,ऐसे सर्वान्तर्यामी नारायण प्रभु के चरण -कमल मेँ , जिसने भक्तिपूर्वक स्वयं को अर्पण करके इस आवागमन के चक्र को नष्ट नहीँ किया , ऐसे लोगो का मानव देह धारण करना व्यर्थ है । ऐसे लोंगो का जीवन वृथा ही है ।
"श्रीवत्सलक्ष्मीकृत्हृत्प्रदेशस्तार्क्ष्यध्वजचक्रधरः परमात्मा ।
न सेवितो येन क्षणं मुकुंदो वृथा गतं तस्य नरस्य जीवनम् ।।"
>>> जिनके वक्षस्थल पर लक्ष्मी जी शोभायमान हैँ , जिनकी ध्वजा मेँ गरुडजी विराजते हैँ , जो सुदर्शन चक्रधारी है , ऐसे परमात्मा मुकुंद भगवान का जिसने क्षणमात्र भी स्मरण नहीँ किया ऐसे मनुष्योँ का जीवन वृथा ही है ।

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