>> संग का रंग मन
को लगता ही है । ज्ञान
सदाचार , भक्ति ,
वैराग्य , आदि मेँ
जो महापुरुष हमसे बढकर
होँ , उन्हीँ का आदर्श
अपनी दृष्टि के समक्ष
रखना चाहिए ।नित्य
इच्छा करेँ कि भगवान
शंकराचार्य
जी जैसा ज्ञान , महाप्रभु
चैतन्य जी जैसी भक्ति और
शुकदेव जी जैसा वैराग्य
मुझे भी मिलेँ ।
प्रातः काल मेँ
ऋषियोँ को याद करने से
उनके सद्गुण हमारे जीवन
मेँ उतरते हैँ । अपने अपने
गोत्र के ऋषि को भी याद
करना चाहिए । आज
तो लोँगो को अपने गोत्र
का भी नाम मालूम नहीँ है
।
नित्य गोत्रोच्चारण
करो । नित्य
पूर्वजोँ का वंदन करो ।
हमेशा सोचते रहो कि मुझे
ऋषि जैसा जीवन
जीना है , ऋषि होना है ,
विलासी नहीँ होना है ।
Friday, 25 December 2015
रहस्य भाव 73
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