Thursday, 10 December 2015

रहस्य भाव 60

कलियुग मेँ श्रीकृष्ण का नाम जपने से सद्गति मिलती है , सेवा केवल क्रियात्मक ही नही बल्कि भावात्मक भी होनी चाहिए ।
  कलियुग का प्रभाव है कि हम विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहते हैँ । शरीर की उत्पत्ति ही काम द्वारा होती है सो इस युग मेँ योग और ज्ञानमार्ग से ईश्वर को प्राप्त करने की अपेक्षा हरिकीर्तन से उनको पाना सरल है ।

कलियुग केवल नाम अधारा ।
सुमिरि सुमिरि नर उतरहि पारा ।।

वैसे तो सिद्धान्त और यम नियम जानते हैँ किन्तु पुण्यशाली ही इसे अपने जीवन मेँ उतार पाते हैँ । नाम जप सरल है क्योँकि जीभ हमारे अधीन है । भगवान का नाम सर्व सुलभ होने पर भी जीव नरकगामी होता है , जो बड़े आश्चर्य की बात है ।

नारायणेति मंत्रोऽस्ति वागस्ति वशवर्तिनी ।
तथापि नरके घोरे पतन्तीत्येतदद्भुतम् ।।

महाभारत के वनपर्व मे यक्ष-युधिष्ठिर संवाद मेँ यक्ष युधिष्ठिर से पूछते हैँ कि - इस जगत मेँ सबसे आश्चर्य क्या है ? युधिष्ठिर उत्तर देते हैँ -

अहन्यहनि भूतानि गच्छन्ति यम मंदिरम् ।
शेषाः स्थिरत्वमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् ।।

मनुष्य प्रतिदिन हजारोँ जीवोँ को यम सदन जाते हुए देखता है , फिर भी वह स्वयं तो इस प्रकार व्यवहार करता है कि जैसे वह अमर हो । मनुष्य यहाँ हमेशा के लिए रहना चाहते हैँ । इससे बढ़कर और क्या आश्चर्य है ?

दूसरोँ को मरते देखकर भी हम स्वयं को अमर मानकर भोग विलास मेँ डूबा रहना सबसे बड़ा आश्चर्य है !!

स्वान्तः सुखाय ¤¤¤¤¤

श्रीहरिशरणम् ¤¤¤¤¤

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