Tuesday, 1 December 2015

रहस्य भाव 57

- ->सुभद्रा हरण <- -
सु भद्रा अर्थात् सुन्दर
कल्याण करने वाली ब्रह्म
विद्या ही सुभद्रा है ।
अद्वैतदर्शी ही सुभद्रा है
जिसके घर मेँ
सुभद्रा हो उसका जीवन
कल्याणमय
हो सुखी होता है ।
ब्रह्म
विद्या प्राप्ति हेतु
त्रिदण्डी सन्यासी बनना पड़ता है

मायावादी एक दण्ड लेते
हैँ जबकि वैष्णव
सन्यासी तीन दण्ड लेते है

त्रिदण्ड यह संकेत देता है
कि वैष्णव सन्यासी अपने
तन , मन , तथा वाणी से
श्रीभगवान की सेवा करने
का प्रण लेता है।
त्रिदण्डी सन्यासी प्रणाली का अस्तित्व
दीर्घ काल से रहा है ,
तथा वैष्णव
सन्यासी को त्रिदण्डी अथवा त्रिदण्डी स्वामी या त्रिदण्डी गोस्वामी कहा जाता है

अर्जुन ने
त्रिदण्डी सन्यास लेकर
चार मास तक कठिन
तपश्चर्या की तथा प्रतिदिन
अठारह घण्टे ऊँ कार
का जप किया तभी प्रभु ने
उन्हेँ सुभद्रा अर्थात
ब्रह्मविद्या प्रदान
की ।
प्रभु के लिए सर्वस्व
त्याग करना ही सन्यास
है ।

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