Saturday, 12 December 2015

रहस्य भाव 66

-> जयति तेऽधिकं
जन्मना व्रजः <-
मानव शरीर ही व्रज है।
यदि इस शरीर व्रज मेँ
प्रभु प्रकट होंगे
तो उसकी शोभा और बढ
जायेगी , उसकी कीमत बढ
जायेगी , उसकी जयकार
होगी ।
." व्रज" शब्द के अर्थ हैँ---
व्रजति भगवत् समीपं स
व्रज । ते
जन्मना व्रजः अधिकं
जयति ।।
भगवान के समीप ले जाने मे
जो सहायक होता है ,
वैसा यह शरीर भी व्रज
ही है । इस शरीर
की शोभा वस्त्राभूषणोँ से
नहीँ , भगवत् भक्ति से
ही बढती है । नाथ , आपके
ही कारण मेरे व्रज शरीर
की शोभा है
आपका प्राकट्य होने पर
ही हमारी शोभा बढ
पायेगी ।
शरीर सिंहासन जब
काम,क्रोध, मद, मोह ,
लोभ , मत्सर , से मुक्त
होगा ,
तभी परमात्मा दौडते हुए
आयेँगे ।तुकाराम और
मीराबाई की आज
भी जयकार होती है ,
क्योकि उनके शरीर - व्रज
मेँ विकारो ने पाँव तक
नही रखा था । उन्होँने
अपने शरीर और हृदय
को ही व्रज
बना लिया था ।

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