Sunday, 6 December 2015

रहस्य भाव 59

" बडे भाग मानुष तन पावा "
--> मानव योनि द्वारा ही हमविभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों (धर्म)को सम्पन्न करने मेँ समर्थ होते हैँ ।मानव जीवन प्राप्त होने पर ही हम अपनीकामनाएँ (काम) पूर्ण कर सकते हैँ ,एवं सभी प्रकार की सम्पत्ति (अर्थ) का सञ्चय भी कर सकते हैँ ।और इस मानव तन मेँ ही यह सम्भावना होती है कि हम भौतिक अस्तित्त्व से मुक्ति (मोक्ष) पा सकते हैँ । ,,,.......माता-पिता के सम्मिलित प्रयास से इस देह की उत्पत्ति होती है । प्रत्येक मानव को अपने माता-पिता का अनुगृहीत होना चाहिए और उसे यह समझना चाहिए कि वह उनके ऋण से उऋण नहीँ हो सकता है , यदि युवा होने पर कोई पुत्र अपने कार्यो और अपने धन के द्वारा अपने माता - पिता कोसन्तुष्ट करने का प्रयास नही करता है , तो वह मृत्यु के पश्चात यमराज द्वारा निश्चित ही दण्डित किया जाता है ,और अपना ही मांस खाने के लिए बाध्य कर दिया जाता है । यदि कोई पुत्र अपने वृद्ध माता - पिता , अपनी पवित्र पत्नी , सन्तान, गुरु, ब्राह्मणोँ एवं अन्य आश्रितो का भरण - पोषणकरने और उनकी सुरक्षा करने मेँ समर्थ होते हुए भी ऐसा नहीँ करता तो वह जीवित होतेहुए भी मृत समझा जाता है ।

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