Friday, 25 November 2016

योगानन्द जी , भगवान नित्य बात कीजिये most

प्रभु से प्रेम कीजिये, अपने जीवन के प्रत्येक क्षण में उनसे बातें कीजिये, कार्य के दौरान तथा मौन में, गहन प्रार्थना के साथ, अपने हृदय की अनवरत ललक के साथ; और आप माया के परदे को विलीन होता देखेंगे। वे, जो फूलों के सौन्दर्य में, आत्माओं में, सात्त्विक आवेगों में,स्वप्नों में, आपके साथ आँखमिचौनी खेल रहे हैं, प्रकट होंगे और कहेंगे, “तुम और मैं लम्बे समय तक बिछुड़कर रहे हैं, क्योंकि मैं चाहता था कि तुम स्वेच्छापूर्वक अपना प्रेम मुझे दो। तुम मेरी छवि में बनाये गये हो, और मैं देखना चाहता था कि तुम मुझे अपना प्रेम देने की अपनी स्वतन्त्रता का उपयोग करते हो या नहीं।”

सच्चे भक्त का हृदय सदा यही कहता रहता है : “मेरे प्रभु! मेरे ईश्वर! मुझे आपकी सृष्टि के भ्रामक नाटक में नहीं फँसना है। मुझे उसका कोई अंश नहीं चाहिये, इसके सिवा कि मनुष्यों के हृदयों में आपके मन्दिर को स्थापित कर सकूँ। मेरा हृदय, मेरी आत्मा, मेरा शरीर एवं मन — सब कुछ आपका है।” ऐसी भक्ति प्रभु का स्पर्श करती है। ऐसा भक्त भगवान् को जानता है।

आपको प्रभु से कितना प्रेम है इसका पता किसी और को मत लगने दीजिये। ब्रह्माण्ड के स्वामी आपके प्रेम से परिचित हैं; दूसरों के सामने उसका प्रदर्शन मत कीजिये, अन्यथा आप उसे खो बैठेंगे।

जिस प्रार्थना में आपकी सम्पूर्ण आत्मा ईश्वर को पाने की इच्छा से दग्ध हो रही हो, वही एकमात्र प्रभावशाली प्रार्थना है। कभी - न - कभी आपने निस्संशय वैसी प्रार्थना की है; शायद जब आपको किसी वस्तु की अत्यधिक आवश्यकता थी, या धन की विकट आवश्यकता थी — तब आपने अपनी इच्छा से आकाश को दग्ध कर दिया था। ऐसा ही आपको ईश्वर के लिये अनुभव करना चाहिये। दिन और रात उनसे बात करें; और आप देखेंगे कि वे प्रत्युत्तर देंगे।
------------------- श्री श्री परमहंस योगानन्द

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