जीव और ईश्वर के मिलन के लिए पहले पूतना वासना का नाश होना चाहिए ।
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अविद्या (पूतना) नष्ट होने से जीवन की गाड़ी राह पर आने लगती है ,और शकटासुर का नाश होता है ।जीवन सही रास्ते पर चलने लगता है ,तब तृणावर्त-,रजोगुण नष्ट होकर सत्त्वगुण बढ़ने लगता है ।
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रजोगुण मिटने के बाद कन्हैया माखन-मन की चोरी करते हैं और जीवन सात्विक बनता है । जीवन सात्विक होने पर आसक्ति की मटकी फूट जाती है । दही की मटकी - संसारासक्ति की मटकी ।
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संसारासक्ति नष्ट होने पर प्रभू जीव के पाश में बंधते हैं । यही दामोदर लीला है । प्रभू के बंधने पर दम्भ - बकासुर , और पाप-ताप -अघासुर का बध होता है ।
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सांसारिक ताप नष्ट होने पर दावाग्नि नष्ट होती है ,शान्त होती है ।अत: इन्द्रियाँ शुद्ध हुई ,अन्त:करण की वासना का क्षय हुआ ।। यही नागदमन , और प्रलम्बासुर बध है ।
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जीव ईश्वर से मिलने के योग्य होने पर कृष्ण की मधुर मुरली की मधु- रिमा तान सुन पाता है । वेणुगीत अर्थात् नादब्रह्म की उपासना ।
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गोवर्धन लीला । गो - इन्द्रियों का संवर्धन , इन्द्रियों के पुष्ट होने पर भक्ति रस उत्पन्न होता है । इन्द्रियों की पुष्टि होने पर षडरस का और वरूण देव का पराभव होता है ।
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चीरहरण लीला - बाह्यावरण , अज्ञान और वासना के नष्ट होने पर रासलीला होती है , जीव और ब्रह्म का मिलन होता है ।।
Friday, 18 November 2016
कुछ ब्रज लीला के आध्यात्मिक पहलु
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