Wednesday, 23 November 2016

दम्भी गुरु से सावधान । कृपालु जी ।

🍃🌹*जय श्री राधे*🌹🍃
*दम्भी गुरु से सावधान........*

हमको जब गुरु मंत्र देता है, तो हमारे ऊपर उसका असर होना चाहिये, मामूली-सा बिजली का करन्ट छू जाता है तो कितना असर होता है और वो इतनी बड़ी स्प्रिचुअल पावर दे रहा है, उस मंत्र में डाल के और कोई असर नहीं हुआ। तत्काल मायानिवृत्ति, भगवत्प्राप्ति, दु:ख-निवृत्ति, आनन्द प्राप्ति का लक्ष्य परिपूर्ण हो जाना चाहिये और अगर नहीं हुआ, इसका मतलब तो गुरु ने धोखा दिया। वो चार सौ बीस है, गुरु नहीं है। वो व्यापार कर रहा है अपना, लोगों को कान फूँक-फूँक करके, चेला बना-बना करके उनसे स्वार्थ-सिद्धि कर रहा है। आखिर उसने क्या दिया? उसने दिया- 'राम रामाय नम:', 'श्री कृष्णाय नम:'। अरे! ये क्या है? अगर हम खाली राम कहें, श्याम कहें तो उस मंत्र में, उस नाम में कुछ कमी है?

*गौरांग महाप्रभु ने कहा-*

दीक्षा पुरश्चर्या विधि अपेक्षा न करे।

भगवान् का नाम दीक्षा की अपेक्षा नहीं करता।

नो दीक्षां न च सत्क्रियां न च पुरश्चर्यां मनागीक्षते।
(पद्यावली)

भगवान् के नाम में भगवान् की शक्ति भरी है। राम राम राम, बस इतना काफी है। श्याम श्याम श्याम, राधे राधे राधे, बस। वो संस्कृत, गुजराती, मराठी, बंगाली किसी भाषा में हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

भगवान् के नाम में समस्त शक्तियाँ विद्यमान हैं। *जिस दिन जिस जीव को यह विश्वास हो जायेगा कि भगवान् और उनका नाम दो नहीं है, एक ही है, तुरन्त भगवत्प्राप्ति हो जायेगी।* इसलिए आप लोग उन बाबाओं के चक्कर में न पड़ना। पहले अन्त:करण शुद्ध करो, बर्तन बनाओ, फिर कोई गुरु दे देगा, आपको सामान।

जो असली गुरु हैं वो ढूँढते रहते हैं, कोई पात्र मिल जाये। ऐसा नहीं होता कपड़ा रँगा लिया, बाल रखा लिया, तिलक लगा लिया और अण्ड-बण्ड बोलना सीख लिया एक मंत्र और कहते चले गये- आओ, सब लोग चेला बन जाओ। हम तुम्हारे गुरु हैं, हमारे चरण धोकर पियो और गोलोक में हम मिलेंगे। ऐसे गुरु की क्या गति होगी, मरने के बाद वह कहाँ जायेगा। नरक जायेगा और तुम्हें गोलोक का टिकट दे रहा है। इतना बड़ा धोखा हमारे देश में चल रहा है।

गुरु यदि दंभी हो तो गोविंद राधे।
गुरु शिष्य साथ जायें नरक बता दे।।

निरन्तर गुरु शरणागति द्वारा कलियुग का कुप्रभाव स्वत: समाप्त हो जाता है अन्यथा अनाचार, पापाचार, दुराचार की कुप्रवृत्ति अधिकार कर लेती है और अच्छे अच्छे साधकों का भी पतन हो जाता है। लोकरंजन की बीमारी बढ़ जाती है। दम्भ करने का अभ्यास पड़ जाता है। साधक स्वयं को गुरु मानने लगता है और सिद्ध जैसा व्यवहार करने लगता है जिससे उसका सर्वनाश हो जाता है और जो उसके प्रति सर्वसमर्पण करके उसके अनुयायी बन जाते हैं भावुकता में अथवा अज्ञानता के कारण उनके लिये नरक का द्वार खुल जाता है। गुरु श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ ही होना चाहिये।

*जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज!*

( हमारे देश में बाबाओं की बाढ़ सी आयी हुई है, जो शास्त्र वेद का नाम तक नहीं जानते वे लोगों के कान फूँक-फूँक कर लोगों को गुमराह कर रहें हैं और धर्म के नाम पर व्यापार चला रहे हैं। जगद्गुरु कृपालु जी महाराज ने इन सबके विरुद्ध आवाज उठाई एवं निर्भीकता पूर्वक शास्त्रों के अनुसार वास्तविक गुरु कैसा होना चाहिये यह समझाकर सही मार्गदर्शन किया। जीवन पर्यन्त उन्होंने किसी का भी कान नहीं फूंका तब ही उनके बारे में सब बाबा यही कहते थे न चेला बनाता है न बनाने देता है। वे स्वयं भी कहते थे 'न गुरु न कोई चेला कृपालु फिरे अकेला।' )
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