कामान् दुग्धे विप्रकर्षत्यलक्ष्मी ;कीर्तिं सूते दुष्कृतं या हिनस्ति ।
शुद्धां शान्तां मातरं मङ्गलानां धेनुं धीरा: सूनृतां वाचमाहु: ।।
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धैर्यवानों (ज्ञानियों) ने सत्य एवं प्रिय (सुभाषित) वाणी को शुद्ध ,शान्त एवं मंङ्गलों की माता रूपी गाय की संज्ञा दी है , जो इच्छाओं को दुहती अर्थात् पूर्ण करती है , दरिद्रता को हरती है ,कीर्ति (यश) को जन्म देती है एवं पाप का नाश करती है । इस प्रकार यहाँ सत्य और प्रिय वाणी को मानव की सिद्धियों को पूर्ण करने वाली बताया गया है !!
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