महाराज अम्बरीष शुद्ध भक्ति स्वरुप हैँ । भक्ति मार्ग मेँ दुर्वासा अर्थात् दुर्वासना बाधा उपस्थित करती है , मै ही बड़ा हूँ बाकी सब छोटे हैँ ऐसी दुर्भावना ही दुर्वासना है सुख का भोग मैँ ही करुँ , ऐसी भावना भी दुर्वासना ही है ।
दूसरोँ को दुःखी करने की दुर्वासना भक्ति मेँ बाधा रुप है भक्ति करते हुए यदि अहंकार हुआ तो समझिए दुर्वासना आ गयी । दुर्वासना से अभिमान जाग्रत होता है और अभिमान से क्रोध । क्रोध कृत्या अर्थात् कर्कशा वाणी उत्पन्न करता है कृत्या अर्थात कर्कशा वाणी भक्ति को मारने की तैयारी करती है तो ज्ञानरुपी सुदर्शन चक्र भक्ति को बचाने आ जाता है । ज्ञान कृत्या को विनष्ट करता है । यदि भक्ति शुद्ध है तो कर्कशा वाणी उसका कुछ भी नहीँ कर सकती है भक्ति की रक्षा सुदर्शन चक्र अर्थात ज्ञान करता है ।
सभी मेँ श्रीकृष्ण का दर्शन ही सुदर्शन है । भक्ति के निकट जब कृत्या अर्थात कर्कशा वाणी आती है तो वैष्णव उसका ज्ञान दर्शन यानी सुदर्शन चक्र से नाश करते हैँ। यदि मन निँदा से प्रभावित हुआ तो वह सच्चा वैष्णव नहीँ है । कर्कशा वाणी को सहन कर लेने से सुख प्राप्त होगा । कर्कशा वाणी बोलने वाला ही अधिक दुःखी होता है यदि भक्ति है तो ज्ञान और वैराग्य दौड़ते हुए आयेँगे । जैसे कि सुदर्शन चक्र अम्बरीष की रक्षा हेतु आया था , और ज्ञान वैराग्य कृत्या कर्कशा वाणी निँदा का नाश करेँगे ।
Wednesday, 9 November 2016
अम्बरीष जी और दुर्वासा जी , विवेचन
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