जैसे अग्नि निराकार है फिर भी जब लकडी जलती है , तो लकडी जैसा ही आकार अग्नि का भी आभास होता है । उपाधि के कारण आकार का आभास होता है , वैसे ही परमात्मा का वास्तविक स्वरुप निराकार एवं आनन्दस्वरुप है । ( आचार्य शंकर
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