धर्म अन्त: करण शुद्धि के द्वारा मोक्ष का हेतु है, धन का नहीं.! धन धर्म का हेतु है, भोग का नहीं.! भोग जीवन निर्वाह के लिए है, इन्द्रियतृप्ति के लिए नहीं.! जीवन. तत्व जिज्ञासा के लिए है, बहुत कर्म करने के लिए नहीं.! फिर तत्व क्या है.? तत्ववेत्ता लोग, तत्व का स्वरूप बतलाते है ---- वह क्या है. --- अद्वय ज्ञान.! अद्वय का क्या अर्थ है. ------ ज्ञाता. अर्थात् जीव. और ईश्वर.,, ज्ञेय अर्थात्. व्यष्टि -समष्टि. कार्य -कारण., व्यक्त एवं अव्यक्त रूप से रहने वाला प्रपंच, इन दोनों से जो सर्वथा रहित अर्थात् दोनों के भावाभाव का अधिष्ठान स्वयं -प्रकाश चेतन है, वह ज्ञान स्वरूप ही अद्वय तत्व है.!!!! इसी को शास्त्रीय परिभाषा के अनुसार ब्रह्म, परमात्मा एवं भगवान के नाम से जाना जाता है.!! ¡¡¡!!!
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