Sunday, 30 October 2016

गौवर्धन लीला तात्विक पक्ष

गोवर्द्धन  लीला ¤¤****
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गो का अर्थ है ज्ञान और भक्ति । ज्ञान और भक्ति को बृद्धिगत करने वाली लीला ही गोवर्धन लीला है । ज्ञान और भक्ति के बढ़ने से देहाध्यास नष्ट होता है जीव को रासलीला मेँ प्रवेश मिलता है ।।
ज्ञान और भक्ति को बढ़ाने हेतु क्या जाय ? घर छोड़ना पड़ेगा। गोप गोपियोँ ने घर छोड़कर गिरिराज पर वास किया था । हमारा घर भोगभूमि होने के कारण राग - द्वेष , अहंभाव - तिरस्कार , वासना आदि हमेँ घेरे रहते हैँ। घर मेँ विषमता होती है और पाप भी , भोग भूमि मेँ भक्ति कैसे बढ़ जायेगी । सात्विक भूमि मे ही भक्ति बढ़ सकती है ।
गृहस्थ का घर विविध वासनाओँ के सूक्ष्म परमाणु से भरा हुआ होता है । ऐसा वातावरण भक्ति मेँ बाधक है ऐसे वातावरण मेँ रहकर न तो भक्ति बढ़ाई जा सकती है और न ज्ञान । अतः एकाध मास किसी नीरव पवित्र स्थल पर जाकर , किसी पवित्र नदी के तट पर वास करके भक्ति और ज्ञान की आराधना श्रेयस्कर है ।
प्रवृत्ति छोड़ना तो अशक्य है किन्तु उसे कम करके निवृत्ति बढ़ायी जा सकती है ।
गो का अर्थ इन्द्रिय भी है । इन्द्रियोँ का संवर्धन त्याग से होता है , भोग से नहीँ । भोग से इन्द्रियाँ क्षीण होती हैँ । भोगमार्ग से हटाकर उन्हेँ भक्तिमार्ग मे लेँ जाना चाहिए । किन्तु उस समय इन्द्रादि देव वासना की बरसात कर देते हैँ । मनुष्य की भक्ति उनसे देखी नहीँ जाती । प्रवृत्तिमार्ग छोड़कर निवृत्ति की ओर बढ़ते समय विषय वासना की बरसात बाधा करने आ जाती है । इन्द्रियोँ का देव इन्द्र प्रभु भजन करने जा रहे जीव को सताता है । वह सोचता है कि उसके सिर पर पाँव रख कर उसको कुचल कर जीव आगे बढ़ जायेगा ।
अतः ध्यान , सत्कर्म , भक्ति आदि मेँ जीव की अपेक्षा देव अधिक बाधक हैँ । जीव सतत् ध्यान करे तो स्वर्ग के देवोँ से भी श्रेष्ठ हो जाता है । इसलिए जब भी इन्द्र भक्तिमार्ग मेँ विघ्न डाले तब गोवर्धन नाथ का आश्रय लेना चाहिए ।
गोवर्धन लीला मेँ पूज्य और पूजक एक हो जाते हैँ । जब तक पूज्य एवं पूजक एक न होँ तब तक आनन्द नहीँ आता । पूजा करने वाले श्रीकृष्ण ने गिरिराज पर आरोहण किया यह तो अद्वैत का प्रथम सोपान है , गोवर्धन लीला ज्ञान और भक्ति को बढ़ाती है। जब ईश्वर के व्यापक स्वरुप का अनुभव हो पाता है , तभी ज्ञान और भक्ति बढ़ती है । ईश्वर जगत मेँ व्याप्त है और सारा जगत ईश्वर मेँ समाहित है ।
वासना वेग को हटाने के लिए श्रीकृष्ण का आश्रय लेना चाहिए।
भगवान ने हाथ की सबसे छोटी उँगली पर गोवर्धन पर्वत धारण किया था यह उँगली सत्वगुण का प्रतीक है । इन्द्रियो की वासना वर्षा के समय सत्वगुण का आश्रय लेना चाहिए । दुःख मे विपत्ति मेँ मात्र प्रभू का आश्रय लेना चाहिए ।
भक्ताभिलाषी चरितानुसारी दुग्धादि चौर्येण यशोविसारी ।
कुमारतानन्दित घोषनारी मम प्रभूः श्री गिरिराजधारी ।।
वृन्दावने गोधनवृन्दचारा मम प्रभूः श्री गिरिराजधारी ।।

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