🌿🌷 - मानव का लक्ष्य - 🌷🌿
"नर तनु गुरु सँग गोविन्द राधे।
प्रेम पिपासा तीनों, लक्ष्य दिला दे ।।"
भाग --1⃣
हमारा जो लक्ष्य है - उस लक्ष्य को पाने के लिए तीन चीज़ें परमावश्यक हैं-
नम्बर(number) एक -
मनुष्य का शरीर। और किसी शरीर में लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होगी | जिसको आप आनंदप्राप्ति कहते हैं, भगवत्प्राप्ति कहते हैं, जो आपका अंतिम लक्ष्य है, उसको पाने के जो तीन प्रमुख साधन हैं, उसमें सबसे पहले नर तनु |
ये शरीर पुरुषार्थ करके, साधन करके, लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है और कोई शरीर नहीं | एकमात्र मानव-देह |
लेकिन अनंत बार ये मानव-देह मिल चुका, लक्ष्य नहीं मिला | तो केवल मानव-देह मिलने से तो और बात बिगड़ गई, बनी नहीं | क्यों ? बिगड़ क्यों गई ? इसलिए कि मानव-देह में हमारे किये हुए कर्मों का फल भोगना पड़ता है | अन्य दूसरे शरीरों में हमारे द्वारा किये हुए कर्मों का फल नहीं भोगना पड़ता | वो भोग योनि कहलाती है| वहाँ केवल भोग-भोग है | और मानव-देह में कर्म भी है और भोग भी है - दोनों हैं |
अतः चूँकि मानव-देह ज्ञान प्रधान है अगर इसको सही दिशा में न लगाया गया, तो गलत दिशा में भी बड़ी स्पीड(speed) में जायेगा | पाप चोरी करना, बात बनाना, दूसरे को दुःख देना, तमाम प्रकार के पाप आप जानते हैं | ये पाप मनुष्य जितनी सफाई से कर सकता है कुत्ता, बिल्ली, गधा कैसे करेगा ? कुत्ता चोरी क्या करेगा ? कोई चीज़ ले के भागेगा, आप देख रहे हैं | लेकिन मनुष्य बैंक(bank) के लाँकरों(lockers) से भी चुरा लेता है | उसमें ज्ञान प्रमुख है | तो पाप करने में ज्ञान की आवश्यकता है | जैसे शुभ कर्म में ज्ञान की आवश्यकता है, ऐसे ही अशुभ कर्म में भी, पाप कर्म में भी।
जितना अधिक ज्ञान होगा जिसके पास, उतना बड़ा पाप कर सकेगा वो | तो हमने अनंत पाप कर लिए मानव-देह में | तो ये मानव-देह सबसे बढ़िया और सबसे खराब | सबसे बढ़िया इसलिए कि इसी मानव-देह में तुलसी, सूर, मीरा, कबीर, नानक, तुकाराम बड़े-बड़े संत हुए और सबसे खराब इसलिए कि अगर आपने भगवत्प्राप्ति का मार्ग नहीं अपनाया तो फिर गलत मार्ग में चलना पड़ेगा | क्यों ?
एक क्षण को भी आप अकर्मा नहीं रह सकते | (श्लोक....)
चलना पड़ेगा | चाहे पूर्व की ओर चलो, चाहे पश्चिम की ओर चलो | चलना पड़ेगा | एक सेकेण्ड(second) को भी बिना चले आप नहीं रह सकते | तो अगर सही दिशा में नहीं चलेंगे, तो गलत दिशा में चलना पड़ेगा | इसलिए सबसे खराब है मानव-देह | ये भी वाक्य सही है और सबसे बढ़िया है - ये तो ठीक ही है | इसलिए तुलसीदास ने बड़ा सुन्दर निरूपण किया है अपनी रामायण में -(श्लोक....) इसके समान कोई और देह नहीं | क्यों ?
अब देखो - रीज़न(reason) |
इसके समान कोई और देह नहीं ? इसमें कितना छुपा है राज़ | इसके समान खराब कोई देह नहीं - ये भी अर्थ हो सकता है और इसके समान अच्छा कोई देह नहीं - ये भी अर्थ हो सकता है | तो तुलसीदास ने बड़ी चालाकी से लिखा - (श्लोक....) जीव चराचर याचना करता है मानव-देह की -- नरक के लिए ? अरे ! ऐसा क्यों लिख दिया ? इसकी इम्पार्टेंस (importance) नरक के लिए है ? नहीं - ज्ञान प्रधान है और मनुष्य लापरवाह है वो भगवान् की ओर नहीं चलता, तो फिर नरक की ओर जाना पड़ेगा | पाप करेगा, नरक जायेगा, इसलिए नम्बर एक - नरक | और कुछ लोग थोड़े समझदार भी होंगे तो उनको स्वर्ग, ये कर्म धर्म करने वाले | नरक , स्वर्ग - और कुछ लोग और भी इने गिने बुद्धिमान होंगे तो 'अपवर्ग' मोक्ष ।
ये तीन चीज़ें अशुभ कर्म, शुभ कर्म और शुभाशुभ कर्म रहित कर्म से मिलती हैं | ये तीन प्रकार का कर्म होता है | अशुभ कर्म माने पाप कर्म | उससे तो नरक | और शुभ कर्म माने पुण्य कर्म धर्म | उसका फल - स्वर्ग | और पाप पुण्य दोनों न करे ऐसा अकर्म - ज्ञानियों का, इससे मोक्ष | और इससे भी बड़ी चीज़ -
'भक्ति सुख देनी' |
ज्ञान वैराग्य अनुचर रहेंगे | उनसे युक्त भक्ति | ये चार चीज़ देने वाली - ये नर तनु है | बहुत गुण गाया है मानव-देह का | वेदों ने, शास्त्रों ने, पुराणों ने,संतों ने, सब ने | क्योंकि फेक्ट(fact) है |
और कोई शरीर है ही नहीं जिससे हम लक्ष्य प्राप्त करें | तो मानव-देह नम्बर एक | नम्बर दो - गुरु संग | गुरु-मिलन नहीं - गुरु-संग | गुरु मिलन तो अनंत जन्म में अनंत बार हो चुका | हमको गुरु लोग मिले | लेकिन हमने संग नहीं किया | उनके पास गए - प्रणाम किया, लैक्चर(lecture) सुना, सिर हिलाया - हाँ हाँ हाँ समझ में आ गया | बस |प्रैक्टिकल(practical) नहीं किया | मन का लगाव संसार में ही किया |
मानव-देह नंबर एक, फिर गुरु का संग नंबर दो | इसलिए मानव-देह में भी भगवत्कृपा मानी गई | ये मानव-देह --(श्लोक....) कभी करुणा करके भगवान् मानव-देह देते हैं - ये पहली कृपा | और फिर गुरु का संग हम करें - ये तो बहुत बड़ी कृपा | गुरु मिले - ये कृपा नहीं | गुरु का संग करें हम, ये विशेष कृपा है | क्योंकि अगर हम संग नहीं करेंगे तो छप्पन व्यंजन रक्खा है, हम खाते ही नहीं | बैठे हैं देख रहे हैं उसको | तो भूखे मरेंगे | पानी रक्खा है, नहीं पीते, मर जायेंगे | तो केवल मिलने से काम नहीं चलेगा | हम मन का संग करें गुरु में |सरैण्डर(surrender) करें, शरणागत हो | उनकी बुद्धि से अपनी बुद्धि जोड़ दें | ये दूसरी विशेष कृपा | और यह भी हो गई अगर भगवान् की कृपा हमारे ऊपर - हो गई | अनंत जन्म में अनंत संत मिले, उन्होंने समझाया, हमारी बुद्धि में बैठा भी | ये दो कृपा तो हो चुकी | उसी का फल है आप लोग बैठे हैं यहाँ | ये आपका कमाल नहीं है । आप लोग अकेले में सोचिये - आपने क्या कमाल किया ? जो मानव-देह मिला और क्या कमाल किया जो तत्त्व ज्ञान मिला ? कितने शास्त्रों वेदों का अध्ययन किया आपने ? ये दो कृपा कैसे मिल गई आपको ? लेकिन लक्ष्य नहीं मिला |तीसरी कृपा और आवश्यक है -
उसका नाम - प्रेम की पिपासा, प्यास। यानी खाना खाने की भूख | पाने की व्याकुलता | उसको कोई मुमुक्षा कहता है - (शंकराचार्य) | कोई लालसा कहता है - (ये ब्रजवासी लोग) अनेक नाम हैं उसके | उस प्रेम के पाने की प्यास, भूख, कामना, व्याकुलता, तड़पन। उसके बिना रहा न जाये |
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(जगद्गुरू श्री कृपालु महाराज जी के प्रवचन का अंश)
क्रमशः - 2⃣ कल के अंक में।
राधे राधे....!👏👏👏
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