"एक साधक की गुरू दीक्षा"
''घर गृहस्थी का सब काम, पति तथा सन्तान की सेवा, सब प्रभु की पूजा ही तो है। कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति का प्रत्येक कार्य पूजा है। बड़े प्रेम से करो। चलते फिरते जब सहज भाव से याद आ जाय तब मंत्र दुहरा लिया करो। मंत्र जाप को अपने लिये बोझ मत बनाओ।
प्रभु की सत्ता को स्वीकार करना और उनकी प्रसन्नता के लिये कर्तव्यपालन द्वारा उनकी पूजा करना- बस, इतनी सी बात है। प्रभु विश्वासी के मुँह से सुनकर प्रभु में विश्वास कर लेना ही तो गुरूभक्ति है। प्रभु विश्वास दृढ़ है तो इससे बढ़कर और कोई कर्तव्य गुरू के प्रति नहीं है। ...................... प्रभु में विश्वास रखना है और उनके बल पर अपने में विश्वास रखना है।''
- ब्रह्मलीन परमपूज्या दिव्यज्योति जी (देवकी बहन जी)
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