।।ॐ।।:
[ पंडित श्री गयाप्रसाद जी के सार वचन उपदेश ]-5⃣
*सदाचार*
सदाचार या वाक्य में दो शब्द हैं
१ । सत्
२ । आचार
व्याकरण सों त् के स्थान में द् बन गयौ है- कहूँ-
कहूँ त् कौ न बन जाय है । यथा सन्मार्ग सत् कौ अर्थ है अति उत्तम
जो अति श्रेष्ठ पुरुष है-सन्त है इनके आचरण ही
सदाचार कहे जायँ हैं।सन्तन की जीवनी पढौ अथवा जो वर्तमान में
सन्त हैं-बड़े गौर सौ इनके आचरण देखौ-इनकी रहनी
देखौ ये कितने सरल हैं। कितने विशाल ह्रदय है।कितने उदार है। कितने क्षमाशील है।दुःख सुख सहने में कितने समर्थ हैं।भूल सों हू क्रोध नहीं करें।
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