Saturday, 8 October 2016

मैं और मेरे प्रभु , शरणानन्द जी

"मैं और मेरे प्रभु"

विश्वास पथ की दीक्षा

प्रभु मेरे हैं-

प्रभु से मेरा नित्य आत्मीय सम्बन्ध है। प्रभु मेरे अपने हैं-सो मुझे प्यारे लगते हैं। प्यारे की नित्य स्मृति स्वाभाविक है। प्रभु स्मृति और प्रभु प्रेम ही मेरा जीवन है।

मैं प्रभु का हूँ-

प्रभु सर्वसमर्थ, करूणावान और शरणागत् वत्सल हैं। मुझे प्रभु अपना करके जानते और मानते हैं। सो मेरे जीवन में भय और चिन्ता का कोई स्थान ही नहीं। मैं निर्भय निश्चिन्त हूँ।

प्रभु में ही मेरा नित्य निवास है-

केवल प्रभु ही हैं, उनके अतिरिक्त कोई और नहीं, कछु और नहीं। प्रभु आदिअन्त रहित हैं। वे सदैव हैं, सर्वत्र हैं। सो मैं प्रभु में हूँ और प्रभु मुझमें हैं। प्रभु सच्चिदानन्द स्वरूप हैं। सर्वत्र सदैव आनन्द ही आनन्द है। सो मैं नित्य आनन्द में हूँ।

-ब्रह्मलीन संत परमपूज्य स्वामी शरणानन्द जी महाराज

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