Tuesday, 4 October 2016

मूर्ति-पूजा और नाम-जपकी महिमा , तृषित

!! राम सियाराम सियाराम जय जय राम !!

“नहिं कलि करम न भगति बिबेकू राम नाम अवलंबन एकू ॥“
.............(मानस १।२७।४)

कलियुग में यज्ञादि शुभ कर्मों का सांगोपांग होना बहुत कठिन है और उनके विधि-विधान को ठीक तरह से जानने वाले पुरुष भी बहुत कम रह गये हैं तथा शुद्ध गोघृत आदि सामग्री मिलनी भी कठिन हो रही है । अत: कलियुगमें शुभ कर्मों का अनुष्ठान सांगोपांग न होने से, उसमें विधि-विधान की कमी रहने से कर्ता को दोष लगता है ।

वैधीभक्ति, विधि-विधान से की जाती है । उसमें किस इष्टदेव का किस विधि से पूजा-पाठ होना चाहिये‒इसको जानने वाले बहुत कम हैं । अत: वह भक्ति करना भी इस कलियुग में कठिन है ।

ज्ञानमार्ग,कठिन है और ज्ञानमार्ग की साधना बताने वाले अनुभवी पुरुषों का मिलना भी बहुत कठिन है । अत: विवेक-मार्ग में चलना कलियुग में बहुत कठिन है । तात्पर्य है कि इस कलियुग में कर्म, भक्ति और ज्ञान‒इन तीनों का होना बहुत कठिन है, पर भगवान्‌ का नाम लेना कठिन नहीं है । भगवान्‌ का नाम सभी ले सकते हैं; क्योंकि उसमें कोई विधि-विधान नहीं है । उसको बालक, स्त्री, पुरुष, वृद्ध, रोगी आदि सभी ले सकते हैं और हर समय, हर परिस्थिति में, हर अवस्था में ले सकते हैं ।

नाम,एक सम्बोधन है, पुकार है । उसमें आर्तभाव की ही मुख्यता है, विधिकी मुख्यता नहीं । अत: भगवान्‌का नाम लेकर हरेक मनुष्य आर्तभावसे भगवान्‌को पुकार सकता है ।

शंका‒नाम-जपमें मन नहीं लगता और मन लगे बिना नाम-जप करने में कुछ फायदा नहीं ! कहा भी है‒

                    “ माला तो कर में  फिरे,  जीभ   फिरै  मुख  माहि ।
                     मनुवाँ तो चहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं ॥“

समाधान‒मन नहीं लगेगा तो ‘सुमिरन’ (स्मरण) नहीं होगा‒यह बात सच्ची है, पर नाम-जप नहीं होगा‒ यह बात दोहे में नहीं कही गयी है । मन नहीं लगने से सुमिरन नहीं होगा तो नहीं सही, पर नाम-जप तो हो ही जायगा ! नाम-जप कभी व्यर्थ हो ही नहीं सकता; अत: मन लगे चाहे न लगे, नाम-जप करते रहना चाहिये ।

जब मन लगेगा, तब नाम-जप करेंगे‒ऐसा होना सम्भव नहीं है । हाँ, अगर हम नाम-जप करने लग जायँ तो मन भी लगने लग जायगा; क्योंकि मन का लगना नाम-जप का परिणाम है ।

  
‒--गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘मूर्ति-पूजा और नाम-जपकी महिमा’ पुस्तक से

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