Friday, 7 October 2016

मानव की माँग

"मानव की माँग"

'' मानव-जीवन की तीन विभूतियाँ हैं-
निश्चिन्तता, निर्भयता और प्रियता।
जो कुछ हो रहा है, वह मंगलमय विधान से हो रहा है-ऐसा मान लेने पर निश्चिन्तता आती है।
जो शरीर, प्राण आदि किसी भी वस्तु को अपना नहीं मानता, वह निर्भय हो जाता है।
जो 'है' वही मेरा अपना है- इसमें जिसने आस्था स्वीकार कर ली, उसी में प्रियता उदित होती है।
( ईश्वर ही "है" अर्थात् नित्य है शेष सब कुछ "था" होना है )
निश्चिन्तता से शान्ति; निर्भयता से स्वाधीनता तथा प्रियता से रस की अभिव्यक्ति होती है। यही मानव की माँग है।''

- ब्रह्मलीन संत परमपूज्य स्वामी शरणानन्द जी महाराज

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