पूज्य बाबा पंडित श्री गया प्रसाद जी के सार वचन उपदेश ]- 3⃣4⃣
*भजन में सहायक*
अखण्ड ब्रह्मचार्य एकान्तवास सात्विज आहार प्रपञ्च शून्यता निश्चिन्तता आरोग्यता निरपराधता प्रसन्नता श्री प्राण प्रियतम में प्रीति साधू इनकूँ बढातौ रहै।
ग्रहण करने योग्य श्रद्धावान् बननौ सुशील बननौ गम्भीरता सरलता गुरुजनन में सम्मान कौ भाव प्राणिमात्र के प्रति दया कौ भाव सबके प्रति ।वाद विवाद सों बचनों सत्य प्रिय एवं हितकर भाषण सेवा भाव।साधक अपने जीवन में इनकूँ अपनावै ये जीवौद्धार में परम् आवश्यक है ।गुरुजनन की आज्ञानुसार ही जीवन बनानौ ,गुरुजनन में भगवत् भाव,विनम्रता क्षमा शीलता ,विषय विरक्ति ,राग -(देष्) शून्यता ,विकारन कौ अभाव ,स्वभाव संशोधन ,सतत् सावधानता,साधन में निष्ठा,महद अनुग्रह की आकांक्षा ।
पूज्य बाबा पंडित श्री गया प्रसाद जी के सार वचन उपदेश ]- 3⃣5⃣
*त्यागवे योग्य*
१.स्त्री जाति सों सम्पर्क (गृहस्थ के लिये परस्त्री)
२.बालकन सों सम्पर्क
३.द्रव्य ,वैभव एवम विलासता
४.जन समूह में अधिक रहनौ
५.अत्याहार
६.अतिभाषण
७.हठ
८.आलस्य
९.प्रमाद
१०.अकर्मण्यता
११.विषय सुख स्पृहा साधक के लिये ये सर्वथा त्याज्य है ।
पूज्य बाबा पंडित श्री गया प्रसाद जी के सार वचन उपदेश ]- 3⃣6⃣
*भजन क लिए स्वस्थ शरीर की आवश्यकता*
१. यदि दीघर्काल पयर्न्त ठीक-ठीक भजन करवे की इच्छा होय तौ शरीर कूँ ,सभरते भये ही भजन करवे कौ विचार राखै । शरीर की सर्वथा उपेक्षा न कर बैठै ।
२. हाँ एक सावधानी राखै कि संभार के नाम पर भोग न बढ़ाय बैठै नहीं तौ देहाध्यास बढ़ जाय है ।
भजन में पूरे-पूरे सहायक है सादगी,सयंम,सदाचार तथा तप ,त्याग ,वैराग्य की भावना ।देहाध्यास इन सबन में सादगी संयमादिक में प्रबल बाधक है।साधक देहाध्यास न बढावै ।
३. स्वस्थ शरीर सों ही साधन सुचारू रूप सों बन पावै है । या कारण साधक कूँ शारीरिक स्वास्थ्य पै विशेष ध्यान देनौ चाहियै ।
अपने प्रमादवश शरीर रोगी हैवै पे साधक छुटै है या कराण साधक अपराधी मान्यौ जाय है ।
४.शरीर की सभार हू भगवत् भजन के लिये ही करै । इन्द्रिय सुखभोग की इच्छा सौ नहीं ।
मैं शान्तिपूर्ण रूप से सक्रिय रहूँगा, और सक्रिय रूप से शान्त रहूँगा। मैं आलसी और मानसिक रूप से जड़ नहीं बनूँगा। न ही मैं अतिकार्यशील बनूँगा, कि धनोपार्जन तो कर सकूँ पर उसका आनन्द न ले सकूँ। सच्चा संतुलन बनाये रखने के लिये मैं नियमित ध्यान करूँगा।
— श्री श्री परमहंस योगानन्द
*🕉आदर्श विचार🕉*🌹
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अनुव्रत: पितु: पुत्रो,
मात्रा भवतु संमना: ।
जाया पत्ये मधुमतीं,
वाचं वदतु शान्तिवाम् ॥
( *अथर्ववेद* )
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पुत्र पिता के अनुकूल चलने वाला हो । माता के साथ साम्यनस्य रखने वाला हो और पत्नी पति के साथ मधु से सनी हुई और शान्ति से भरी वाणी बोले ॥
*🌹जय श्री राधे*🌹
*🌻जय श्रीकृष्ण 🌻*🌳🙏🏼🌹🌳🙏🏼🌹🌳🌹🙏🏼
संसार के सभी भोग प्राप्त हों, और साथ-साथ भगवान भी मिलें - ऐसा नहीं होता।
जो कुछ होता है, भगवान का रचा होता है। तुम्हारे नहीं चाहने पर भी वह होकर रहेगा।
महायोगिराज देवरहा बाबा
भगवान सब मनुष्यों में है, परन्तु सब मनुष्य भगवान में नहीं हैं - यही कारण है कि वे दुख और कष्ट भोगते हैं।
स्वामी रामकृष्ण परमहंस
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" न मे भक्त: प्रणश्यति।"
मेरे भक्त का नाश नहीं होता।
( भगवान् श्रीकृष्ण )
( सच्ची भक्ति करने वाले को भगवान उसे उसकी भगवद्चेतना से नीचे नहीं गिरने देते। इस प्रकार वह सदैव आत्मोद्धार के मार्ग पर प्रशस्त रहता है,और अन्त में परमपद की प्राप्ति करता है। )
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टालो मत,जो करना है उसे आज कर डालो।
कल मृत्यु है,जीवन आज है,अभी है - क्षण भर के बाद तुम हो या न हो।
इस जीवन का उपयोग तुम करते हो छुद्र में,व्यर्थ में,और सोचते हो - कल सब काम चुक जायेगा,तब याद कर लेंगे परमात्मा को।
तुम धोखा दे रहे हो अपने को।
ओशो
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बूँद समुद्र में समाती है,यह तो सभी जानते हैं।
...........समुद्र बूँद में समाता है,यह बिरले ही जानते हैं।
संत कबीर
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जैसे चींटी अन्नकण संग्रह करती है - वैसे ही मानव को सद्गुण संग्रह करने चाहिए।
स्वामी सत्यमित्रान्द गिरि
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केवल भोगों की इच्छा रखने वाले मनुष्य कहलाने योग्य नहीं हैं।
मनुष्य कहलाने योग्य वही हैं,जिनमें अपने स्वरूप की जिग्यासा और परमात्मा की लालसा है।
( परम श्रद्धेय स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज )
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