🌿🌷 - मानव का लक्ष्य - 🌷🌿
भाग - 2⃣
"नर तनु गुरु सँग गोविन्द राधे।
प्रेम पिपासा तीनों, लक्ष्य दिला दे।"
प्यास की बहुत सारी लिमिट(limit) होती है | किसी चीज़ के पाने की लिमिट बहुत क्लास(class) की होती है |
साधारण क्लास की भी होती है - 'मिल जाये तो अच्छा है |' थोड़ा प्रयत्न किया - 'अरे हटाओ नहीं मिलेगी |' और 'नहीं इसको पाना है', और लग गए उसके पीछे | तो ऐसे ही प्रेम पाने की प्यास भी अलग-अलग मात्रा की सब की होती है | वो वैराग्य पर डिपैंड(depend) करता है | संसार से हमें कितनी लिमिट में वैराग्य हुआ ? यानि ये ज्ञान कितना पक्का हुआ ये हमारा नहीं है - ये माँ, ये बाप, ये बेटा, ये स्त्री, ये पति, ये धन, ये संसार - आत्मा के लिए नहीं है | है ही नहीं | उससे मतलब ही नहीं है एक प्वाइंट(point) भी |
हम तो दिव्य आत्मा हैं भगवान् के अंश हैं | और ये संसार तो माया का है, मैटीरियल(material) है | ये शरीर के लिए भगवान् ने बनाया है | हमारे लिए नहीं बनाया | ये बात हर समय, हर जगह सेंट-परसेंट(cent percent) बैठी रहे | अब प्रेम की पिपासा सही हो जाएगी, अब सही वैराग्य हो जायेगा | इसको पक्का करने के लिए बार-बार अभ्यास करना होगा |
लेकिन जिस दिन ये पक्का हो जायेगा - ये हमारा नहीं | आज वो गया ? हाँ | क्यों जी जब वो मरा होगा, शरीर छोड़ के जा रहा होगा, तो सोचता होगा - ये माँ भी छूटेगी ? बाप भी ? बेटा-बेटी भी ? ये हमारी बनाई हुई बिल्डिंग(building) ? ये सब छूटा जा रहा है ? मैं अकेला जा रहा हूँ ? अरे ये सब हमारे ? कैसा लगता होगा उसको ? अरे ! वो समय भी आयेगा आप लोगों का भी | तो उस समय आप लोगों को कैसा लगेगा | सोचो ! अकेले में कि जब अकेला जाउँगा, कोई साथ नहीं होगा ? हमारा कर्म साथ होगा | जो हमने साधन किया है - अच्छा-बुरा | वो साथ जायेगा | उसी का फल मिलेगा | कैसी फीलिंग(feeling) होगी उस समय हमको ? तो प्रेम की प्यास जितनी तेज हो उतनी जल्दी लक्ष्य मिलता है | दो चीज़ तो हमको मिल गई - मनुष्य का शरीर और तत्त्वज्ञान - गुरु के संग का परिणाम | यानी मनुष्य शरीर मिला और उस ज्ञान में लक्ष्य को पाने का साधन - ज्ञान भी मिला | दोनों बातें मिल गई |
अब तीसरी चीज़ पैदा करना - ये हमारा काम है | ये न भगवान् का काम है, न गुरु का काम है | भगवान् ने अपना काम कर दिया | मानव देह दे दिया, गुरु से मिला दिया | गुरु ने अपना काम कर दिया- आपको तत्त्वज्ञान करा दिया, जो लाखों, करोड़ों वर्ष में आप शास्त्र-वेद पढ़के न समझ पाते, वो उसने चुटकियों में करा दिया | अब इसके आगे तीसरा काम आपका | वो भक्ति करना, उपासना करना, साधना करना, मन को भगवान् में लगाना - ये जो साधन है, भक्ति है | ये भगवान् नहीं करके देंगे, न कोई गुरु करके देगा | क्यों ? अगर वो करके दे सकते, तो अनंत कोटि ब्रह्माण्ड ही क्यों रहता ? अरे! देखो - भगवान् का एक गुण है -
'सत्य संकल्प' - (श्लोक....) अंतिम। सबसे बढ़िया गुण 'सत्य-संकल्पः' यानी भगवान् ने जो सोचा - हो गया | करना वरना नहीं | ये तो ऐसे लिख दिया वेद में कि -(श्लोक....) भगवान् ने देखा, भगवान् मुस्कुराये | अजी नहीं मुस्कराना-फुस्कराना कुछ नहीं | बस सोचा | ये तो करना पड़ेगा भगवान् को |(श्लोक....) उसने सोचा | बस हो गया | जो सोचा हो गया | सृष्टि हो जा | हो गई | प्रलय हो जा | हो गया | रक्षा हो जा | हो गया | शरीर बन जा | बन गया | शरीर समाप्त कर दो, निराकार हो जाओ | हो गए | जो सोचते हैं - वो हो जाता है | ये उनका एक गुण है सबसे बड़ा | और ये गुण संतों के पास भी है | भगवान् के पास जो गुण होते हैं न ये आठों, ये सब महापुरुषों को भी दे देते हैं सेंट-परसेंट, लेकिन न कोई भगवान्, न कोई संत ऐसा कर सका कि सोच ले - 'अनंत जीवों का उद्धार हो जाये, सब गोलोक चले जायें' |
अरे ! कोई संत कर लेता ऐसा संकल्प, तो हम लोगों का काम बन जाता फ्री(free) में | हाँ | कितना सरफोड़ी करते हैं संत लोग | किताब लिखते हैं, दुनिया भर का लेबर(labor) करते हैं हमारे साथ | अरे काहे को इतना प्रयत्न कर रहे हो ? बस संकल्प कर लो | हो गया | नहीं | हमको करना पड़ेगा | हम भगवान् और गुरु के भरोसे बैठे-बैठे तो अनंत जन्म गँवा चुके | ये मूर्खता अब छोड़नी होगी | ये हमको करना है | जीवों को करना है वेद कहता है -(श्लोक....) ये जीव को करना है | चलना है तुम को | 'उत्' ऊपर को |(श्लोक....)नीचे को, अधोगति के लिए रजोगुणी, तमोगुणी, सत्वगुणी के लिए नहीं |
तो ये प्रेम की पिपासा ये हमको बढ़ानी होगी | और एक मन है और दो चीज़ें हैं पाने की, खाने की | एक विष, एक अमृत | एक माया, एक भगवान् | एक प्रेय, एक श्रेय | दो में एक अपनाना पड़ेगा | तीसरी कोई चीज़ है ही नहीं | और बिना अपनाये आप रह सकते नहीं | क्योंकि आप अकर्मा नहीं रह सकते, क्योंकि आपको लक्ष्य प्राप्त करने की नेचुरल(natural) भूख है | इसलिए दो में एक साइड(side) में जाना पड़ेगा | तो सही साइडमें जाकर सही लक्ष्य प्राप्त कर लो -(श्लोक....) 'साधु भवती' वेद कह रहा है | तो इस प्रकार ये तीन दुर्लभ वस्तुयें हैं | इनमें दो मिल चुकी, तीसरी हमको करनी है, हमको पानी है, हमको बढ़ानी है - वो प्रेम की पिपासा - उसका हम अभ्यास करके, बढ़ा करके और अपने लक्ष्य को प्राप्त करें |
और इस मानव देह के बारे में एक बात सदा याद रक्खें | वो नहीं रखते आप लोग | वो क्या है ?
अगला क्षण मिले न मिले | अभी मेरी उम्र क्या है? दस साल का तो हूँ, बीस साल का तो हूँ, चालीस साल का तो हूँ, पचास साल का तो हूँ | ये मत सोचो| अरे ! आँख से देख तो रहे हो संसार में क्या हो रहा हैं ? बच्चा पैदा हुआ | ' क्याँव' कहा और मर गया, एक बार रोया फिर मर गया | अरे माँ के पेट में ही मर गया, मरा हुआ पैदा हुआ | वो आई.ए.एस.(I.A.S.) करके आ रहा है लड़का | इधर पिता, माँ खुश हो रहे हैं | और बधाई हो रही है, मिठाई बँट रही है | रास्ते में एक्सीडेंट (accident) हो गया | मर गया | रोज़ देख रहे हैं | तो अपने लिए भी तो सोचना है | युधिष्ठिर से यक्ष ने पूछा था सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है | 'किमाश्चर्यम्' सबसे बड़ा आश्चर्य है कि हम अपने लिए नहीं सोचते | लापरवाह हैं | उसको हार्टअटैक (heart attack) हो गया, वो आज मर गया | अच्छा खासा बैठा था वो अरबपति, वो प्राइमिनिस्टर (Prime Minister) वो प्रेसीडैन्ट (President) | अरे ! किसी को नहीं छोड़ता काल | राजा, रंक, फ़कीर, संत कोई हो | जाना होगा, शरीर छोड़ना होगा | और कब ? ये पता नहीं। इसलिए उधार नहीं करना है ।वेद कहता है -(श्लोक....) प्रह्लाद ने कहा -(श्लोक....) अरे ! बचपन में ही लग जाओ भगवान् की ओर | युवावस्था आवे न आवे | और हम लोग क्या करते हैं | बचपन है | अभी तो पढ़ने का समय है, खेलने कूदने का समय है | युवावस्था आई | अभी तो मौज मस्ती का समय है | यही करते-करते मर गये | अनंत बार मर गये | एक दो बार नहीं | और प्रेम पिपासा नहीं पैदा कर सके। भगवान् के मिलन की परम व्याकुलता नहीं पैदा कर सके।
इसलिए इन तीनों बातों को समझना है, बार-बार विचार करना है | और बार-बार संसार से मन को हटाकर लक्ष्य की ओर लगाना है | अभ्यास से ही काम होगा | और अगर ऐसा नहीं किया तो -(श्लोक....) करोड़ों कल्प चौरासी लाख में घूमना पड़ेगा | अनंत जन्म घूम चुके, आगे भी घूमना पड़ेगा।
हमारी जिद्द नहीं काम देगी | ए जी - हम झगड़े में नहीं पड़ते | जो मन में आता है वो करते हैं | ठीक है | जीव कर्म करने में स्वतंत्र है | मन में आये सो करते जाओ लेकिन फल भोगने में परतंत्र है | फल भोगना पड़ेगा, भगवान् के अनुशासन के अनुसार | वहाँ नहीं चलेगी | हम नहीं भोगते जी, न -(श्लोक....) इसलिए सावधान होकर उधार न कर के हम लोगों को साधना में तत्पर हो करके अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहिए |
लाड़ली लाल की जय |👏👏👏
(जगद्गुरू श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचन का अंश)
(-- बरसाना १०.४.२००६)
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