गाय की उत्पत्ति के बिषय में एक बार महर्षि नारद ने भगवन नारायण से प्रश्न किया तो भगवान नारायण ने बताया की हे नारद ! गौमाता का प्राकट्य भगवान श्रीकृष्ण के वाम भाग से हुआ है! उन्होंने बताया कि एक समय की बात है भगवान श्रीकृष्ण राधा गोपियों से घिरे हुए पुण्य बृंदाबन में गए, और थके होने से वे एकांत में बैठ गए।
उसी समय उनके मन में दूध पीने की इच्छा जागृत हुई, तो उन्होंने अपने बाम भाग से लीला पूर्वक ''सुरभि गौ '' को प्रकट किया । उस गौ के साथ बछड़ा भी था और सुरभि के थनो में दूध भरा था! उसके बछड़े का नाम ''मनोरथ ''था! उस सुरभि गौ को सामने देख कर श्रीदामा जी ने एक नूतन पात्र पर उसका दूध दूहा! वह दूध जन्म और मृत्यु को दूर करने वाला एक दूसरा अमृत ही था !स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने उस स्वादिस्ट दूध को पिया!
भगवान नारायण ने आगे देवर्षि नारद जी को बताया कि श्री दामा जी के हाथ से वह दूध का पात्र गिर कर फूट गया और दूध धरती पर फ़ैल गया! गिरते ही यह दूध सरोवर के रूप में परणित हो गया!
जो गोलोक में ''छीर सरोवर '' के नाम से प्रसिद्द है! भगवान श्रीकृष्ण की इच्छा से उसी समय अकस्मात असंख्य कामधेनु गौएँ प्रकट हो गई !जितनी वो गायें थी उतने ही गोपी भी उस ''सुरभि '' गाय के रोमकूप से निकल आये! फिर उन गउवों से बहुत सी संताने हुई! इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण जी से प्रकट सुरभि देवी से गउवों का प्राकट्य कहा जाता है! उसी समय भगवान श्रीकृष्ण ने देवी ''सुरभि '' की पूजा की और इस प्रकार त्रिलोकी में उस देवी सुरभि की दुर्लभ पूजा का प्रचार हो गया !
पुराणो में गाय की पूजा से प्राप्त प्रतिफल का आख्यान है - जो गौशाला में स्थित गॉवों की प्रदछिणा करता है ,उसने मानों सम्पूर्ण चराचर विश्व की प्रदछिणा कर ली ! गायों की सींग का जल परम पवित्र है, वह सम्पूर्ण पापों का शमन करता है ,साथ ही गायों के शरीर को खुजलाना -शहलाना भी सभी दोष पापों का शमन करता है! गायों को ग्राश देने वाला स्वर्ग लोक में पूर्ण प्रतिष्ठा पता है ! जो ब्यक्ति लगातार एक वर्ष तक भोजन करने से पूर्व गाय को ग्राश खिलता है वह ज्ञानी बन जाता है! गउवों के लिए जो धूप और ठण्ड से बचाने वाले गौशाला का निर्माण करता है वह अपने सात कुल का उद्धार कर लेता है !
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