Friday, 17 June 2016

श्रयते हरिम् या सा श्रीः

श्रयते हरिम् या सा श्रीः ।।

श्रीजी क्या ?  सेवा भक्ति। भक्ति ही श्री है ।

आराधनम् राधा -  आराधना ही राधा है ।

भक्ति - सेवा मे जो रस है ,  जो सार है , जिससे वह बन्धे है ,  जिस  रस सार में वह डूबी है , वह  भाव  रूपी  गोंद जिससे भक्ति सेवा  आराध्य  इष्ट से चिपकी  हो , भक्ति और सेवा का मूल  और  सार  तत्व ही श्री है  ,  राधा  है ।
अन्तः करण के  भाव रस में द्रवीभूत होने पर ही आह्लदिनी शक्ति प्रकट होती है ।
खाली  तरल हृदय नहीं ,,
द्रविभूत  हृदय में आह्लादिनी शक्ति  का विशेष आविर्भाव है , उसका महत्व है ,वह भक्ति है ।
द्रवीभूत  अन्तः करण तो  असमर्थता में होता  ही है  । पर उसमें भाव  रस विषयक आह्लाद नहीं होता जब  तक तब तक  भक्ति  नहीं  ।

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