Tuesday, 14 June 2016

मन को कोई समझना नहीँ चाहता

मन को कोई समझना ही नहीँ चाहता ।
मन व्याकुल है , कही नहीँ टिकता , विचारों का समूह है , हर स्वाद को चखना चाहता , आदि - आदि । क्यों इतना भटकता है वह ?
एक बात तो सिद्ध हुई उसे तलाश है , दूसरी बात जिसकी तलाश है वह मिल भी नहीँ रहा ।
मन का विरोध अपनी ही ऊर्जा का विरोध है , मन का निरोध सम्भव है । भगवत् अनुराग में आसक्त हुए बिन वह चैन नहीँ पायेगा । उसे असीम प्यास है अतः असीम रस ही उसकी तृप्ति है । एक बार मन भगवत् चरण में गया तो वह स्वयं को नहीँ पायेगा , क्योंकि भगवत् चरण का रस उसकी व्याकुलता से अधिक है । वह स्वयं को लघुतम् वहीँ पायेगा , शेष वह स्वयं को प्राप्त से बृहद जान अतृप्त रहेगा ।
मन को भगवत् अर्पण कीजिये , वह इसी भटकाव के गुण कारण रस आतुर हो नित नविन रस का कारण होगा ।   सत्यजीत तृषित

No comments:

Post a Comment