नेत्र है सौंदर्य का बोध कराने वाली , परन्तु यह नेत्र का होना उस दिव्य सौन्दर्यसार के मनोभिराम दर्शन से पूर्व अधूरे ही सदा रहते ।
नेत्र का होना ही सिद्ध करता है उसे परम् सौंदर्य का दर्शन हो जावें , परन्तु ऐसी प्यास नही होती और जड़ता में ही सौंदर्य बोध पाकर नेत्र भगवत दर्शन की आतुरता बना नही पाती । भगवत दर्शन हेतु नेत्रों को बाहरी सौंदर्य से भी दिव्य अति दिव्य की लालसा का जगना आवश्यक है । और इस क्रम में आत्म दर्शन भी प्राथमिक स्तर पर होना चाहिये । आज आत्म दर्शन की भावना मात्र से भी अहम पुष्ट होता है , जिसे प्यास नही , तड़प नही वह कही भी रुक जाता है , जिसे प्यास है वह भगवत आलिंगन में भी अपूर्ण रहता है क्योंकि भगवत सुख हेतु आलिंगन में भी स्व सुख की सिद्धि नही होती वहाँ , और अपनी और भाव और सेवा का अभाव रह ही जाता है । जिसे प्यास है उसे प्यास ही है , स्वभाविक तृप्ति होती है परन्तु प्यास ही वहाँ मूल मन्त्र है । तृप्ति का सुख नही और प्यास ही वृद्धि होती है । इस प्यास की वृद्धि में भगवत स्वरूप और रसात्मक होता जाता है , आवरण छटते जाते है ।
सत्यजीत तृषित ।।
Monday, 20 June 2016
नेत्र है सौंदर्य बोध कराने वाली
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