Sunday, 12 June 2016

राधा और सीता प्रतीकात्मक नहीँ

जयजय ...
राधा और सीता , प्रतीकात्मक नहीँ ।।
दिव्य सच्चिदानन्दविग्रहा है । ना की पंचभौतिकी देह नारी ।
नारी की मण्डणा के लिये पात्र नहीँ वे । ना ही नारी समाज संग आलोचना ही । वें ईश्वर की ईश्वरी अधिष्ठात्री शक्ति है । उसका सम्बन्ध जीव से तुलनात्मक हो ही नहीँ सकता । ईश्वर कर्म पाश से सदा मुक्त है । जो कर्म होते दीखते है वह सब लीला है और लीला किसी काल दृश्य हो कर भी कालरहित नित्य है ।।
वस्तुतः मानव अपने सामर्थ्य का कितना ही उपयोग कर लें , सदुपयोग कर ले। ईश्वर की दिव्यातीत आह्लादिनी वृत्ति सार सिंधु स्वरूपा , को तब तक नहीँ जान समझ सकते जब तक उस शक्ति से प्रकाशित दिव्य भगवत् स्वरूप स्वयं चित् में उस रस का एक अणु निक्षिप्त कर व्याकुल ना कर दे ।
नित्य परिपूर्ण सार रस तत्व का जगत् से सम्बन्ध तो है पर वह नश्वरता में शेष शाश्वत और नित्य भाव ही से है । हमारी सन्धि नश्वरता से है , वह सन्धि जब तक अपने शाश्वत दिव्य नित्य स्वरूप और स्वभाव से ना हो तब तक परमोच्च शक्तियों को साधारण ही समझा जाएगा ।
और यह संसार बोध हो या ना हो , अपने अज्ञान अनुरूप भी ऐसी दिव्यतम पूर्ण विकसित सार रस को कहने से नहीँ चुकता ।
ना मानता है , ना जानता है , फिर भी कहता रहता है , जिसके लिये श्रोता भी उन्हें मिल जाते है ।
और निर्गुण , निर्लिप्त , परम्-उच्च , परा शक्ति को मायिक बन्धनों में बंधा जान प्रस्तुत किया जाता है ।
लोग कहते है ज्ञान की क्या आवश्यकता , यहीँ वास्तविक ज्ञान की आवश्यकता है जो अन्तः करण में प्रकट होता है , सत्-चित्-आनन्द का पूर्ण तो असम्भव पर आवश्यक बोध हो । सत्यजीत तृषित । जय जय श्यामाश्याम
सादर नमन

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