🌱प्रार्थना🌱
प्रार्थना याचना नहीं , वरन् याचना का अभाव है।
इसमें जीवन और जीवन देने वाले प्रभु से कोई शिकायत नहीं बल्कि जीवन की सहज व प्रसन्नतापूर्वक पूर्ण स्वीकारोक्ति है ।
कई बार हम कहते हैं कि हमारी प्रार्थना असफल हो गई क्योंकि हमें मन चाहा नहीं मिला, हमारा अनचाहा, हुआ सच तो यह है कि हमारी प्रार्थना तो उसी क्षण असफल हो गई जब हमने कुछ मांग लिया, जब हमने अपनी चाहत सामने रखी ।
जो परमात्मा के द्वार पर मांगता है वह खाली हाथ ही लौटता है जो वहां बिना किसी मांग के खाली हाथ खड़ा हो जाता है केवल वही भरा हुआ लौटता है परमात्मा से कुछ मांगने का अर्थ है कि हमें शिकायत है।
शिकायत -अविश्वास है, नास्तिकता है। शिकायत का अर्थ है कि जैसी स्थिति है उससे हम नाराज हैं जो परमात्मा ने दिया है उससे हम अप्रसन्न हैं जैसा हम चाहते हैं वैसा नहीं है और जैसा है वैसा हम नहीं चाहते हैं , शिकायत का यह भी अर्थ है कि हम परमात्मा से स्वयं को ज्यादा बुद्धिमान मानते हैं वह जो कर रहा है गलत कर रहा है हमारी सलाह है मान कर उसे करना चाहिए वही ठीक होगा ।
इसके विपरीत प्रार्थना तो परम प्रेम है जिसमें न कोई मांग है न कोई शिकायत इसमें ने तो याचना है और न कोई वासना , प्रेम तो सर्वदा मांगशून्य होता हैै , बेशर्त होता है ।
प्रार्थना की वास्तविक अनुभूति तब होती है जब प्रार्थना ही हमारा आनंद बन जाती है।
आनंद, प्रार्थना की बाट न जोहता हो और मांग न हो , पीछे जो पूरी हो जाए तो आनंद मिलेगा । प्रार्थना करने में ही आनंद मिलता हो तो ही प्रार्थना हो पाती है।
प्रार्थना जब हृदय में प्रकट होती है तो कहना नहीं पड़ता की प्रार्थना पूरी नहीं हुई, प्रार्थना का होना ही उसका पूरा होना है। प्रार्थना जीवन का शिखर है । प्रार्थना से पूर्ण हृदय इस जगत का अंतिम खिला हुआ फूल है , वह आखिरी ऊंचाई है जो मनुष्य पा सकता है, इसके पार कुछ है ही नहीं।
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