भक्त के भावो की मधुरता ही भक्तिरस है। भक्त की भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण की अपनी एक भावना होती है इसे विवाद या मर्यादा का विषय न बनाकर, भावनात्मक दृष्टि से इस पर विचार करना चाहिए। कन्हैया माखन चुराकर खाते थे गोपिया छिपाती थी, जिस दिन कन्हैया न चुरा पाये उस दिन व्याकुल हुई कन्हैया को खोजती है। बस भक्तो को वो अतुलनीय आनंद , सुख देने को भगवान ये लीलाए करते थे वरना उन्हे चुराने की क्या आवश्यकता थी ,सबसे ज्यादा गौ दूध दही माखन तो उन्ही के यहा होता था। जैसे धिक्कार कर दिया गए भोजन मे स्वाद नहीं मिलता, प्रेम से दिया जाये तो रस मिलता है , पर गोपियो के छिपाने, कृष्ण के चुराने के खाने, और इस लीला को देख गोपियो के हर्ष को देख उस माखन मे रस नहीं सुरस मिलता था भगवान को
भगवान राम वन यात्रा के समय बहुत बड़े बड़े ऋषि-मुनियो के आश्रम मे रुके, सब ऋषि मुनियो ने खाने को कंद-मूल-फल प्रेम से अर्पित किए, भगवान राम ने भी प्रेम से खाये। जब आगे बढ़े तो शबरी मिली, शबरी ने झूठे बेर खिलाये और भगवान राम को ऐसा स्वाद पहले कभी न मिला था, अभी तक रस मिला था सुरस तो शबरी के झूठे बेरो मे ही मिला और इसीलिए भगवान ने इनकी तुलना कंद-मूल-फल से नहीं की - कंद, मूल, फल सुरस अति दिए राम कहुँ आनि। कितना सुंदर वर्णन है
भगवान को दी जा रही वस्तु या भोग से उन्हे मतलब नहीं वो बस उसके पीछे निहित हमारी भावना देखते है भावनाओ की उत्कंठा जितने उच्च स्तर पर होगी भगवान को अति सुरस उतना ही प्राप्त होगा और जब भावनाए उच्च शिखर पर पहुचती है तब भगवान नंगे पैर दौड़े आते है
वो तो हमेशा तैयार रहते है हमारे पास आने को , हममे ही शबरी मीरा सूर सी प्रबल इच्छा होनी चाहिए..सार ये है भगवान के प्रति अपने प्रेम को, श्रद्धा को, आस्था को, भावनाओ को उत्कर्ष की ओर ले जाओ। बाकी उन पर छोड़ दो ---हम सिर्फ हमारी जाने अपनी उन्हे जानने दो। कुछ सुना था पहले वो पद यहा बिलकुल सही बैठते है --अपने मन की मे जानु और पी के मन की राम
साँसो की माला पे , सिमरू में पी का नाम
प्रेम के रंग ऐसी डूबी, बन गया एक ही रूप
प्रेम की माला जपते जपते आप बनी मे श्याम
साँसो की माला पे सिमरू में पी का नाम
प्रीतम का कुछ दोष नहीं है, वो तो है निर्दोष
अपने आप से बाते करके हो गयी में बदनाम
साँसो की माला पे सिमरू में पी का नाम जय गोविंदा जय माधव जय गोपाल जय राघव
Thursday, 7 September 2017
भावों की मधुरता ही भक्तिरस है
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