Thursday, 7 September 2017

यात्रा

-> यात्रा का अर्थ है -याति त्राति । इन्द्रियो को प्रतिकूल विषयो से हटाकर अनुकूल विषयो मे लगा देना ही यात्रा है । तीर्थ यात्रा उसी की सफल होती है , जो तीर्थ जैसा ही पवित्र होकर वहाँ से लौटता है ।
    केवल यात्रा करने से ही पुण्य नही हो जाता है ...
....आजकल  लोग यात्रा के नाम सैर करने तीर्थो मे चले जाते है ...
   .... यात्रा करने के पहले प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि ....
.... ब्रह्मचर्य का पालन करुँगा , कभी क्रोध नही करुँगा , असत्य नही बोलूँगा , व्यर्थ भाषण नही करुँगा ...
....एक -एक तीर्थ मेँ एक पाप का त्याग करो -
,...काशी मे काम का त्याग करो , गोकुल - मथुरा मे क्रोध को त्यागो   ऐसे अन्य तीथोँ मे भी ...
   ....काशी ज्ञानभूमि है , अयोध्या वैराग्यभूमि है , व्रज प्रेमभूमि है , नर्मदा का किनारा तपोभूमि है .-
....... रेवातीरे तपः कुर्यात् .....
....... नर्मदा के किनारे ज्ञान , वैराग्य , और भक्ति तीनोँ सिद्ध हो सकते है .....
...... तीर्थ मेँ क्रोध मत करो , ब्रह्मचर्य का पालन करो , तभी तीर्थयात्रा का फल मिलेगा ।

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